फ़क़त ख़ुदा के सामने, मग़रूरी चलती हैं।

Started by Shraddha R. Chandangir, September 29, 2017, 08:47:06 PM

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Shraddha R. Chandangir

उस पार का होकर भी, इस पार रहता हैं
इत्मिनान  से बैठकर भी, बेक़रार रहता हैं।
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दिल के बाहर तो मियाँ, अदाकारी होती हैं
दिल के अंदर लेकिन, इक ग़ुबार रहता  हैं।
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फ़क़त ख़ुदा के सामने, मग़रूरी चलती हैं
बंदे के लिए तो फ़क़ीर, ख़ाक़सार रहता हैं।
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ख़ुद से ग़द्दारी की, और इंतहा क्या होगी?
तुझे बेदख़ल करके, तेरा इंतज़ार रहता हैं।
~ श्रद्धा
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