आस विठूरायाची (अभंग)।

Started by Hemlatapr, October 18, 2017, 12:33:34 PM

Previous topic - Next topic

Hemlatapr

      ।आस विठूरायाची (अभंग)।

   गाभाऱ्याशी बसलेला। चंद्रभागेत बुडालेला।
   माझ्या सख्या॥
   पंढरीच्या नाथा। पंढरीच्या नाथा।

   रूप हे देखणी। तृप्त चित्त झाले।
   डोळे मिटे माझे।तुझ्यात रमलेले।

   प्रश्नमंजूषा खेळी मन। उत्तर कुठे।
   मन व्याकुळ झाले।तुझ्याच पुढे।

   किलबिलाट पक्ष्यांचा। सळसळाट झुडूपांचा।
   नाद हा सर्वपरी। तुझ्याच मुखाचा।

   रूक्मिणी राधिका। मन मीरा होऊन।
   तुझ्याच प्रीतीचा। गजर करून।

   माय - बापावाणी। लेकरू आम्ही।
   निरागस हा चेहरा। तुझ्याच शोधात राही।

   दिसे चंद्रभागा कुठे कुठे। सगळीकडे।
   ह्रदयी मार्गी लागे। विठूरायाकडे।

   दिशाहीन झाली दृष्टी। सर्वपरी तुझीच मूर्ती।
   रूक्मिणी म्हणे। गाजविल तुझीच किर्ती।

   पुंडलिकासाठी। होऊन विटेवरी।
   झाला संतांसाठी। विठू माझा वारकरी।

   उंबरठा ओलांडील। पंढरपूर येईल।
   अरे माझ्या सख्या॥
   आस तुझी ही। ह्रदयी पेटत राहील।
   पंढरीच्या नाथा। पंढरीच्या नाथा।
   तुच माझा विठूराया॥

              -कु. हेमलता रामदास पोरळकर.
                     नागपूर.