ऐतबार

Started by sanjweli, July 13, 2018, 12:11:36 AM

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sanjweli

दि. १ जुलै २०१७
   
   

खुद से बेकौफ हूँ  इतना
खुद की ना पहचान जानता हूँ

हमदर्द कोई यहाँपर ना मिला
हर किसी का मझाक बन जाता हूँ

कहते ए शायर है पगला,दिवाना
अपनोसे भी इसलिए मैं बेगाना रहता हूँ

जो दे दे जवाब मेरे खत का
हमसफर वो हमराज मैं धुंडना चाहता हूँ

ना कोई अपना है ना बेगाना
अपनी वफाऔंपर पुरा मैं एैतबार रखता हूँ

मै तेरी दुनियासे ए खुदा
कायनात मुहब्बत की हासील करना चाहता हूँ

बस ख्वाब है इस शायर का
अपनी कब्र फिरसे मैं तेरे खातीर उठना चाहता हूँ

          ###खत###

©महेंद्र विठ्ठलराव गांगर्डे
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