रझा(ख्वाईश)

Started by sanjweli, July 13, 2018, 12:19:57 AM

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sanjweli

"बातें तनहाई की
अब अक्सर होती हैं।
देख तेरी जुदाई
अब मुझसे पुछती है।
कहाँ छुप गयी अब
तेरी परछाई मेरी परछाई।
आरजु मुहब्बत की
वो तनहाई का आलम
न जाने हैं कहाँ न तुझे पता ना मुझे पता।
इन सुलगती निगाहोंको
बस अब तेरा दिदार बाकी है।

आईना ना कोई पाक मिला मुझे
जिसमें रुख तेरा देख ले
जुत्सजू खुद अब धुंड रही है।
देख तुझे और मुझे
अब तनहाई के विरानेमे।
फैलाकर हात अपने
बिचमें खडी हैं जुदाई।
वो शायराना साया
तेरे जुल्फोंका है अब लापता।
लब्ज खोलकर बोल दे
तू आखिर ऐ बंदिश कोनसी हैं।

हमराज हमनशी सुन ले
तू ऐ अब हमदम मेरे।
कोनसा ऐ मकाम
और कोनसा यह दयार है।
देख बागी साजिश कैसी
हर जगह हैं छाई ।
तेरे मेरे मोहब्बत का वो कारवाँ
बोल दे मैं धुंडू  कहाँ
अब जाहिल न जाने
क्यूँ हमारी तकदीर हैं।

सच्चे प्यारको जीतेजी कहाँ
यहाँ मिलती जन्नत हैं।
सौगात खुशनसीबीकी उन्हें
रु-ब-रू देख ले मरकर मिलती हैं।
दस्तक अब आखरी है
खुदा के दर पे आयी।
लिपटा दामन जानशीनोंका
दोनों का हैं अब एक जहाँ।
सुन दरबार में खुदा कें
आखिर होती रझा कबुल है।"

©म.वि.
©sanjweli.blogspot.com
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