फितरत

Started by शिवाजी सांगळे, July 05, 2019, 09:47:18 PM

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शिवाजी सांगळे

फितरत

पास से वो गुज़र गए, नजरें झुकाकर चलें गए,
मानो हमें जानते नही, किनारा करके चलें गए !

निगाहें एक होनी थी, वो अजनबी से चलें गए,
पलभर यूं सोचते रहें, वो इतने कैसे बदल गए !

सोचा यह उन्हें देखते, हम रूबरू कैसे आ गए,
आस थी कुछ बात हो, वह चुप्पी साधे दूर गए !

पुछना था हाल जरा, वो गुमसुमसे क्यूँ रह गए,
चलो ये अच्छा हुआ, फितरत उनकी जान गए !

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