राह

Started by शिवाजी सांगळे, February 02, 2020, 06:16:50 PM

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शिवाजी सांगळे

राह

तुम तो ऐसे रुठ गये, मनाना तुम्हें चाहता था
तुमने ज़रा देर कर दी, समय पर मै पहुंचा था

कोशिशें करके सारी, कुचलकर कागज कई
हमेशा खयाल तुम्हारे, कागज़ पे लिखता था

टकटकी लगाकर वो, छत के घुमते पंखे पर
संजोकर सपने दिलमें, रातभर मै जागता था

होकर हल्का-फुल्का, मन अनोखा यह कभी
जागते हुए सपनों मे, पंखुड़ी जैसा उड़ता था

आहट है ना किसकी, जाने कैसा आभास है
तुम तो ना आई वहां, राह 'शिव' निहारता था

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