श्रुंगारिक कविता

Started by Mahesh Pendse, February 07, 2020, 07:46:07 AM

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Mahesh Pendse

विझवून दीप सारे त्या चांदण्यात रात्री,
का पेटसी नव्याने माझ्या तृषार्त गात्री?
ते मखमली निखारे घेऊ कसे उशाला?
तू शुक्र चांदणी की तेजाळ दीपमाला?

सैलावुनी बटेला हळुवार हासली ती,
कोजागिरी प्रमाणे मज मुग्ध भासली ती,
तो चांदवा नभिचा मम ओंजळीत आला,
अलवार गुंफलेली जणू धुंद गीतमाला

आभास चांदण्याचा की स्पर्श मोरपंखी,
श्वासात दरवळे बेभान ती सुरंगी,
गंधाळले धुके अन मौनास अर्थ आला,
आता कवेत माझ्या अनुरक्त पुष्पज्वाला                                   .....                                      *उदय गोखले व्हायोलिन वादक* रत्नागिरी ...       

अप्रतिम उदयजी...