इंतज़ार में

Started by शिवाजी सांगळे, March 28, 2020, 03:00:23 PM

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शिवाजी सांगळे

इंतज़ार में

ख़्वाब के इंतज़ार में खिडक़ी, दिवार पर
और एक खुली गुमसुम पलकों के भितर

चीरकर सलाखें बेझिझक आती रही, वो
झांकती अधुरी सभी यादें रेंगती हुई अंदर

बचपनसे लेकर उम्रभर कि टूटीफूटी कई   
तस्वीरें जोडती अंधेरेमें लिपटी हुई चादर

अनगिनत वाकयें, कुछ सपने, कई लम्हें
भुला नहीं पाता कयीयों बार आजमाकर

जकड़ती है रात संग मुझे नींद आगोश मे
ख़्वाब रह जातेहैं सारे कहीं दूर दूर होकर

©शिवाजी सांगळे 🦋
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