अस्तित्व

Started by शिवाजी सांगळे, April 08, 2020, 07:27:46 AM

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शिवाजी सांगळे

अस्तित्व

चांद दौड़ता रहा, मै रोकता रहा
फिर भी रूका नहीं
मेरे प्रयासों के बावजूद
बातें भी हुईं नहीं
बादलों के गिरोह में
वह शायद भुल गया होगा
अस्तित्व मेरा, धरा पर है
सीमित दौड़ उसकीं
पता है मुझे,
आहिस्ता, हां आहिस्ता
थक जाएगा, धीरे से
अपने आप, घुल जाएगा
रात की स्याही में एक रात,
क्या मै वहीं रहुंगा?
धरा पर!

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