उलझन

Started by शिवाजी सांगळे, July 26, 2020, 08:17:16 PM

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शिवाजी सांगळे

उलझन

अब यहां सब बदल गया है
जज्बातों का भार चढ गया है

शिथिल पकड़ एहसासों कि
व्यवहारों का भाव बढ गया है

तौलता है हर शख्स दुजे को
रिश्तों का ढांचा हिल गया है

कौन अपना है कौन पराया
मन उलझनों में फस गया है

सोचो चाहे जो भी जितना
भावना में जुआ मिल गया है

©शिवाजी सांगळे 🦋
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