दिल- ए- दर्द

Started by मोतिदास उके साहिल, September 16, 2020, 07:17:36 AM

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दिल- ए- दर्द

रेत की तरह  हाथों से हर रिस्ता छुट रहा है,
दिल ए दर्द न जाने क्यों दिल मे ही घूँट रहा है,
पाला था दिल मे नजाकत से जिसे,
ओ दर्द भी नासूर बनकर आँखों से फुट रहा है।
समेटता रहा तन्हाईओ को क्यों दिल ए परेशां
आँखो ही आँखो मे हसीं ओ सपना टूट रहा है।।
मिलता नही जहां मे जो चाहा दिल ने हमेशा
हर अपना ही न जाने क्यों हमको लूट रहा है ।।

मोतिदास अ. उके "साहिल"
                                     


दिल- ए- दर्द

रेत की तरह  हाथों से हर रिस्ता छुट रहा है,
दिल ए दर्द न जाने क्यों दिल मे ही घूँट रहा है,
पाला था दिल मे नजाकत से जिसे,
ओ दर्द भी नासूर बनकर आँखों से फुट रहा है।
समेटता रहा तन्हाईओ को क्यों दिल ए परेशां
आँखो ही आँखो मे हसीं ओ सपना टूट रहा है।।
मिलता नही जहां मे जो चाहा दिल ने हमेशा
हर अपना ही न जाने क्यों हमको लूट रहा है ।।

मोतिदास अ. उके "साहिल"