यहां पर

Started by शिवाजी सांगळे, October 09, 2020, 12:54:19 AM

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शिवाजी सांगळे

यहां पर

बेचैनी है ये खामोश क्यूँ यहां पर
तुम अकेले वहां मै तन्हा यहां पर

किस्मत का खेल अजीब है यारा
किसे समझूँ मै तकदीर का मारा
बेजुबां सा लगें हर कोई यहां पर
तुम अकेले वहां...

लगते है यहां मुझको बेजान सारे
कोशिशों में लगें है परेशान बेचारे
झगडता है शख़्स खुदसे यहां पर
तुम अकेले वहां...

रास्ते और मंज़िलें अलग सबकी
मानता कोई इसे मर्जी है रब की
फसां दुविधा में इन्सान यहां पर
तुम अकेले वहां...

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