हर मोड से

Started by शिवाजी सांगळे, October 09, 2020, 06:35:49 PM

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शिवाजी सांगळे

हर मोड से

हर मोड से ज़िन्दगी यूँ गुज़र गई
साथी न कोई फिर भी सुधर गई

समझा जब कोई नहीं है किसका
पलभर के लिए जरा लगा झटका
थोड़ी थी उम्मीदें सारी बिखर गई
साथी न कोई...

सफ़र रहा दूर का और मैं अकेला
दुनियादारी वाला था लिए झमेला
चढ़ीं हवा ईमानदारी की उतर गई
साथी न कोई...

सगा न कोई यहां संबंधी कामका
बस् फैसला हुआ अकेले जीनेका
छोड़ने से सिर्फ तनहाई मुकर गई
साथी न कोई...

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