ये रात

Started by शिवाजी सांगळे, November 21, 2020, 02:38:14 AM

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शिवाजी सांगळे

ये रात

बादलों संग आंखमिचौली करती हुई
घिरी संध्या रात की दस्तक देती हुई

चलाती हुई तुम्हारे यादों का कारवाँ
आज फिर एक नयी रात बढ़ती हुई

यूं बदलता है रोज़ चांद अपना चेहरा
वही रात है उसे गोद में खिलाती हुई

अरमान मेरे सहज रोज़ ये बढाते हुए
जगाये मुझे मेरे सपनों को चुराती हुई

भोर होते आहिस्ता आहिस्ता खुदसे
जागती है रात अफ़साने सुनाती हुई

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