सोचता हूँ ...?

Started by Ashok_rokade24, December 21, 2020, 03:15:17 PM

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Ashok_rokade24

सोचताँ हूँ के कितना खुबसुरत है ये जहाँ|
सच तो ये है हमने कभी इसे देखाँ ही नही॥   

लम्हा जिंदगी का हर एक बडा खुशहाल था|
सच तो ये है की खुलकर हमने जियाँ नही॥

साथ हो लीये सोचकर है मंझिल एक हमारी|
मगर वक्तही बुरा था साथ उन्होने दियाँ नही॥

चौकाँ देती है आहट कदमोकी हर दम |
मुड कर देखा तो नजर कोई आयाँ नही॥

बहोत वक्त हो चूकाँ फीरभी समझाँ नही
बस दौडता रहा मंझिलका तो पता नही॥

जिसे मंझिल समझा बस धोका नजरों था |
कब कहाँ ले जायेगी जिंदगीका भरोसा नही॥

अशोक मु.रोकडे.
मुंबई.