साए मे

Started by शिवाजी सांगळे, May 15, 2021, 01:43:10 AM

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शिवाजी सांगळे

साए में

यादों के साए में जीना अच्छा लगता है
दोहराना उन्हें कभीभी अच्छा लगता है

परछाईयां कुछ रातदिन हमको सताती है
कारवाँ भी बिते लम्हों का मिलने आता है
यादों के साए में...

सोचते है कई दिनोंसे उनको भूल जाएंगे
क्या करें अक्सर भूलना मुश्किल होता है
यादों के साए में...

मानले नादान वो अतीत का एक साया है
फिर क्यों हरवक्त चेहरा उनका दिखता है
यादों के साए में...

©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
संपर्क: +९१ ९५४५९७६५८९
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Atul Kaviraje

     शिवाजी सर, यादो के सहारे जिने की कला मनुष्य को सिखनी चाहिये. वक्त गुजरता है, लम्हे बीतते है कुछ अच्छे दिन आते है, कइ बुरे दिनो से गुजरना होता है. उन्हे कितना भी भुलाना चाहे, मगर वे अतीत के साये बनकर हमारी वर्तमान जिंदगी में मंडराते रहते है.

     बेहतर है, इन यादों को यादे ही बनकर रहने दो, परेशानी की नौबत न आने दो, उन बिते दिनो को भुलाना ही इन्सान की समझदारी है, इन यादो के साये में न उलझो.

     " साये में " इस कविता में आपने, बिती यादो को अच्छी तरह समझाने का यत्न किया है. उनमे उलझना या उन्हे सुलझाना ,यह इन्सान के हाथो में ही है. 

     यादो को जरूर याद कर ले इन्सान तू
     तेरे जिने का सहारा बन सकते है वो
     वर्तमान में तुझे जिने का सही अंदाज,
     सही ढंग सिखा - दिखा सकते है वो.

-----श्री अतुल एस परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-११.०६.२०२१-शुक्रवार.