" फक्त एका जमिनीच्या तुकड्यासाठी "

Started by Atul Kaviraje, May 18, 2021, 03:14:02 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

   आजच्या  घडीला  पर -राष्ट्रात  जे  युद्धाचे  पडघम  वाजताहेत , त्यात  अनेक  राष्ट्रांची   नावे  जी  कधी  या  युद्धात  अडकतील  असे  वाटले  पण  नव्हते  , ती  पुढे  येताहेत . इस्त्रायल , अरब , मुस्लिम , पॅलेस्टाईन , हमास , तेल  अवीव  , आणि  बरेचसे . जमिनीच्या  तुकड्यासाठीचा  हा  संघर्ष  एक  नव्हे , दोन  नव्हे  तर  तब्बल  170 ते  175 वर्षांची  परंपरा  राखून  आहे . ज्यू   , अरब , मुस्लिम , पॅलेस्टाईन , ख्रिश्चन     असे  जाती  समुदाय  यात  ओघा -ओघाने  ओढले  गेलेत.

     ही युद्धाची  ठिणगी  काही  दिवसांतच  अक्राळ -विक्राळ  अश्या  वणव्याचे  रूप  धारण  करीत  आहे . पण  या  अश्या  जमिनीच्या  हव्यासापोटी , प्राण  जाताहेत  ते  फक्त  निष्पाप , सामान्य  नागरिकांचे . आपण  उभे  आहोत  विज्ञानाच्या , भविष्याच्या  उंबरठ्यावर , आणि  आपले  विचार   आहेत  पुरोगामी . कुठे  तरी  हे  थांबायला  हवे , फक्त  एका  अखंड  भू -भागासाठी , एकमेकांत  युद्ध  का  हवे  ? समजुतीने , एकत्र  येऊन  हा  तह  घडू  शकत  नाही  का  ? त्यातच  माणसाचे  हित  आहे . सर्व  युद्ध  राष्ट्रांनी  एकत्र   येऊन , सल्ला -मसलतीने  युद्ध -बंदीचा  एकमताने  विचार  केला , तर  तो  स्वागतार्हच  आहे , त्याने  माणसांचे  प्राण  वाचतील , व  माणुसकीचे  दर्शनही  घडेल .

युद्धाच्या  या  सद्य -स्थितीवर  ऐकुया  एक  कविता ---- 

     फक्त  एका  तुकड्यासाठी  जमिनीच्या
     हे  वाद  का  पेटले  ?
     जीवाचा  घोट  घेण्या  एकमेकांच्या
     मनुष्यच  का  पुढे  सरसावले  ?


          रक्त -रंजित  हा  लाल  इतिहास
          आहे  पानांत  शतका नु  शतके
          किती  रक्त  सांडले  भूईवरी
          निष्पापांचे  अगणित  पार  मोजण्यावरी ?

   
        का  आहे  वाद  सुरु  ?
        का  हे  युद्ध  पेटतंय  ?
        का  लालसेपोटी  आज  माणूस
        धर्मान्ध , जात्यांध,  क्रूर  होई ?


            आज  धरित्री  रडतेय  पाहून
            आक्रोश  ऐकू  येत  नाही
            माझे  विभाजन  नका  करू
            याची  डोळा  आज  पाही


       ऐकू  नाही  येत  आक्रंदन
       डोळ्यांवर  झापडे  चढलीत  युद्धाचीच
       आमची  जमीन  आमचीच  माती  ?
       युद्धाने  का   बदलेल  स्थिती  ?   


       फक्त  एका  तुकड्यासाठी  जमिनीच्या
       एकमेकांच्या  रक्तास  हा  चटावला
       सारेच  निर्मनुष्य  झाले  तर
       वाली  उरेल  का  जमिनीला  ?


        मोह  नको  या  जमिनीचा
        या  मातीसच  तुम्ही  जपा
        गुण्या  गोविंदाने  वाटून  एकत्र
        माणुसकीचा  मार्ग  करा  सोपा

          यापुढे  नको  हे  युद्ध
          फक्त  हवा  शांती  बुद्ध
          माणसानेच  जपायला  हवे  माणसाला
          कायमच  जपूया  धरित्रीचा  ठेवा  !

-----श्री अतुल एस परब
-----मंगळवार-18.05.2021