कविता - "क्षार जल समुद्राचे"

Started by Atul Kaviraje, May 23, 2021, 05:45:25 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                    कविता - "क्षार  जल  समुद्राचे"
                    --------------------------

अथांग  महासागरात  भरलेले
क्षार  जल  विखुरलेले
घेई   मानवा  दोहो  करानी
साठे  मिठागराचे  साठवलेले

इतके  खारट  कि  चूळही
मारता  होई  मुख  खारटलेले
तर  प्यायची  बातही  सोडा
पोटात  जाताच  आतड्यातही  ढवळलेले   

तीन  चतुर्थांश  भाग  जलाचा
आला  कोठुनी  देवच  जाणे
एक  चतुर्थांश  भू  विचारी
केविलवाणी  होऊन  हो  बिचारी

अनंत  आश्चर्ये  पोटात  दडवूनी
कित्येक  युगे  पाहीत  वाहे
मानवही  कौतुके  नवल  करी
बा सागरा  तुज  उपमाच  नोहे

असाच  वहात  पहात  राहील
घेऊन  जल  हे  क्षाराचे
खरं  खोटं  हे  जाणिले
अक्षय  डोंगर  लाभताहेत  कि  मिठाचे

ऐसे  जल  तुझे  सागरा
येईल  कामी  मानवा  एके  दिनी
जेव्हा  संपतील  झरे  गोड  पाण्याचे
मदतीचे  हात  येतील  मग  विज्ञानाचे .


-----श्री अतुल एस परब
-----दिनांक-23.05.2021-रविवार .