"सरिता - सागर ( स्त्री- पुरुष )"

Started by Atul Kaviraje, May 23, 2021, 06:00:52 PM

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Atul Kaviraje

                  "सरिता - सागर ( स्त्री- पुरुष )"
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चलू मै अकेली इस राह पर अगर
पर क्या तुम मेरा साथ दोगे जीवन-भर ?
इस  नदी को समेट अपने विशाल बाहो मे,
क्या सागर रूप धारण कर बनोगे मेरे हम-सफर ?


अखंड बहाव, संतत झरना, निरंतर तुम्हारी जल-धारा
दुजा-पराया न देखे, लेकर बहे, तुम्हारी सहस्त्र-धारा
क्या मुझे भी इस अपनापन का भागीदार बना दोगे ?
क्या मुझे भी अपने आगोश मे तुम समाओगे ?


पुरुष-स्त्री कि ये कहानी आई कहती सालोसे
नर बिना नारी, नारी बिन नर, नही जीवन, जीवन,
पुरुष स्त्री-बिन अपूर्ण, नारी है पुरुष कि अर्धांगिनी,
बह रही है धारा युगोसे, बहती रहेगी युगो-तक.


कोई कमी न रहे, कोई न होगा अग्रेसर
नारी का एक रूप ये भी, निभाये साथ जीवन-भर
ना अलग कोई सबक होगा, ना अलग कोई पाठ,
यही है जीवन कि रीत, इसे निभाना होगा एक होकर.


-----श्री अतुल एस परब
-----दिनांक-23.05.2021-रविवार .