कविता-बावरी

Started by कदम, May 30, 2021, 12:06:25 PM

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कदम

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ऐ बावरी इतनी न बन बावरी
तुम्हारे लिए ही बजे मेरी बासरी
तु शरमिली तु बावरी तु राधा और मै हूं  हरी
संभल जरा सा ठहर जरा सा सबकी नजर तुझ पर कडी
ऐ बावरी इतनी न बन बावरी ॥

तेरा पल्लु उडे हवा मे बावरी
दिल यह गिरे मेरा दिल से बावरी
तु प्यारी सी चले बनठन के बावरी
मन मेरा करे मेहसुस घुटन बावरी
ऐ बावरी इतनी न बन बावरी ॥
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-कदम.के.एल

Atul Kaviraje

     कदम सर, आपके प्रस्तुत कविता की नायिका, हरिप्रिया राधा, जो कि श्याम के जीवन कि संगिनी है.उसका प्रेम है. प्रस्तुत "बावरी" कविता, श्याम कि राधा के प्रति अनुराग व्यक्त करती है, जताती है, उसका चूल-बुला पन, उसकी ठीठुरती अदा, उसका बावलापन, कृष्ण का मन मोह लेता है.

     राधा कि इस अनोखी अदा पर वह इतना मोहित होता है, कि उसकी बासुरी से प्रीत के हि सूर निकलते है. राधा-श्याम का प्यार इतना अनुठा है कि, राधा के बिना श्याम नाही, एवं श्याम के बिना राधा. कदम सर, आपने राधा के इस बावरेपन का यथार्थ एवं उचित वर्णन  किया है.

     मेरी बासुरी तुझे पुकारे
     कहे श्याम,  सांझ सकारे
     सुरो कि ही है, ऐसी नशा,
     मोहित राधा चली मिलने मोहन प्यारे.

-----श्री अतुल एस परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-३०.०५.२०२१-सूरजवार.