छोटी कविता - वक्त

Started by कदम, June 03, 2021, 09:49:35 PM

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कदम


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वक्त से आगे,
और वक्त से पिछे,
सिर्फ,मजबुरीयाँ पलती है
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- कदम.के.एल.

Atul Kaviraje

     कदम सर, बिलकुल ठीक ही कहा है आपने. वक्त के आगे हम जैसा साधारण  इन्सान मजबूर है. हमारा भूत, वर्तमान एवं भविष्यकाल सब वक्त ही नियोजित करता  है. हम जो सोचते है, वैसे कभी होता नहीं, यह वक्त ही है जो इन्सान को दुबारा सोचने पर मजबूर करता है. हम सब वक्त के हाथो का खिलौना है.

    बुजुर्गो को कभी कहते हुए सुना है, की थोडा ठहरो, समय ठीक नहीं है. अच्छा समय आने दो. सब कुछ ठीक हो जायेगा. यही है वो वक्त, जिसका आपने, अपने छोटीसी कविता " वक्त ", में जिक्र किया है.

       इन तीन लाईनो में आपने जीवन का बडा ही अंतिम सच सामने लाया है. सोचने पर मजबूर किया है.
आपकी इस छोटीसी कविता में जीवन का महान गर्भितार्थ छुपा हुआ है.

     
     हे इंसा, कीतनी भी कोशिश कर ले तू
     वक्त के आगे है बेबस और मजबूर तू
     सारा किया - धरा है वक्त के हाथों,
     वक्त है सारे मर्ज की दवा.

-----श्री अतुल एस परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-११.०६.२०२१-शुक्रवार.