सबल-नारी,स्त्री-शक्ती कविता-(कविता क्र-१)-"अब नहीं रहेंगी झुकी निगाहें"

Started by Atul Kaviraje, June 28, 2021, 05:52:50 PM

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Atul Kaviraje

मित्रो,

     नारी आज की शक्ती है, नारी एक भक्ती है. अब वो निर्बल नहीं है. पुरुषो के कंधो से कंधा मिलाकर  वो चल रही है. अब उसे अपमान के आंसू पिने की जरुरत नहीं है, असे उसका सम्मान प्राप्त हुआ  है. आज उसकी निगाहे झुकी सी नहीं है, बल्की वो पुरुषो की नजरो में नजरे मिला रही है, वो अब निर्भय है, आत्मनिर्भर है.

     आज के युग की वो मानिनी है, तेजस्विनी है, राणी झांसी,अहिल्या,जिजामाता का रूप है. इस आज की  नारी को मेरा दिली प्रणाम. सूनते है, ऐसी नारी के जीवन पर आधारित ,जो अपनी निगाह कभी झुकने नहीं देती, मेरी स्वरचित रचना. प्रस्तुत कविता का शीर्षक है -  "अब नहीं रहेंगी झुकी निगाहें" 
     
                 सबल-नारी, स्त्री-शक्ती कविता
                         कविता क्र-१
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                  "अब नहीं रहेंगी झुकी निगाहें" 
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अब नहीं रहेंगी झुकी निगाहें
और नहीं बहेंगे आंसू अपमान के
अस्त्र बनाकर उसीका तुने,
जिना सिख लिया है समाज में.

     जुल्मो  कि जलती आग में
     झुलस रहा था तेरा तन-बदन
     सीतम्  इतने  ढIये समाज ने,
     रुक गये थे तेरे बढते कदम.

प्रतिशोध कि धधकती ज्वाला
बह रही है तेरे लहू में
आँखोसे फुटती अनगिनत चिंगारीया,
प्रतीत हो रही है आज प्रलय-सी.

     निर्बलता के आसुंओ को पीकर
     तुने रूप दिखाया है दुर्गा का
     कांटो भरी राह पर चलकर,
     तूने हासील कि है सफलता.

आवाज उठाकर अन्याय के खिलाफ
उदाहरण दिया है सक्षमता का
दंडित किया है ऊन अपराधियोंको,
हथियार उठाकर बगावत का.

     नजरों से नजरे  मिलाकर
     दे रही आव्हान आज तू
     कंधो से कंधा मिलाकर,
     पथ पर अग्रेसर हो रही है तू.

मानिनी तू, तेजस्विनी तू
तुझमे हि अनेक रूप समाये
राणी झांसी,अहिल्या, जिजामाता के रूप में,
इतिहास रहा है गवाह बनकर.

     जो जंग अबतक है तुने छेडी
     उसकी लौ को बुझने न देना
     मुसीबतो का पहाड चाहे टूट पडे,
     इन निगाहो को झुकने न देना.


-----श्री अतुल एस परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-28.06.2021-सोमवार.