सच्चे दिल की कविता - "दिल सच्चा और चेहरा झूठा"

Started by Atul Kaviraje, July 17, 2021, 01:13:33 AM

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Atul Kaviraje

मित्रो,

     कभी भी अपनी दिल कि आवाज सूननी चाहिये, कयों कि वही एक आवाज है जिसमे सच्चाइ  झलकती  है. किंतु असली जिंदगी में, इन्सान बाह्य चेहरे को देखकर  एक बडी भूल करता है. इस नकली चेहरे में उलझ कर वह असली दिल को साफ साफ भूल जाता है. असे तब  पछतावा होता है, जब समय हाथ से निकल चुका होता है. उजले  चेहरे के पीछे छुपा  हुआ काला नकाब उसे जब दिखाई नहीं देता, तब  उसे यह निर्मल, सत्य  से भरा हुआ दिल  कैसे दिखाई देगा ? दिल का साफ चेहरा किसे भी दिखाई नहीं देता.

     मित्रो, जिसकी नियत  खोटी होती है, उसका  चेहरा हमेशा झूठा होता है, और जिसकी नियत साफ है, सच्ची है, जिसके दिल में खोट नहीं है, उस का  दिल हमेशा सच्चा ही होगा. असल में इन्सान इस असलीयत को हमेशा भूल जाता है. तो मित्रो, हम सब हमेशा याद रखेंगे, की नापाक चेहरे को भुलाकर  हम उसी पाक दिल को देखने की, अपनेही दिल से कोशिश करे. इस चेहरे और दिल की कशमकश को मैंने सरल तरीके से सुलझाने की कोशिश की है. प्रस्तुत रचना  इसी  विषय पर आधारित है. तो, सुनीये, मित्रो, इस साफ- पाक दिल की कविता. कविता का शीर्षक है - "दिल सच्चा और चेहरा झूठा"

     
                        सच्चे दिल की कविता
                    "दिल सच्चा और चेहरा झूठा"
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दिल को देखो
चेहरा ना देखो
चेहरे ने लाखो को लुटा,
दिल सच्चा और चेहरा झूठा.

बाजार मे तो चेहरे ही बिकते है
दिल कि कौन सुनता है
किमत तो चेहरे की हि होती है,
दिल का सुनापन किसे दिखता है.

कभी इस दिल कि आवाज तो सुनो
धडकन पर इस कि जरा ध्यान दो
सुरत पर किसी के मत जाना,
दिल का कभी साफ चेहरा तो देखा करो. 

दिल कब से तुम्हे पुकार रहा है
दिल कब से तुम्हारी राह देख रहा है
लाखो हसीन चेहरे मिल जायेंगे,
पर एक पाक दिल कि चाहत कब से है.


-----श्री अतुल एस परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-17.07.2021-शनिवार.