सावन कविता - "झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के"

Started by Atul Kaviraje, August 08, 2021, 10:08:51 AM

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Atul Kaviraje

मित्रो,

     हिंदी कविता के थोर कवी श्री -सुमित्रानंदन पंत  की कविता आपको सुनाता हू. यह कविता सावन (वर्षा ऋतू ) पर आधारित है. हिंदी कविता का मेरा यह पहिला पुष्प आपको सप्रमाण सादर करता हू. इस कविता के बोल है - "झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के"

                                     
                              हिंदी कविता-(पुष्प-1)
                                  सावन कविता
                   "झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के"
                              कवी - सुमित्रानंदन पंत
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झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम छम छम गिरतीं बूंदें तरुओं से छन के!
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।

ऐसे पागल बादल बरसे नहीं धरा पर,
जल फुहार बौछारें धारें गिरतीं झर झर!
आंधी हर हर करती, दल मर्मर तरु चर चर,
दिन रजनी औ पाख बिना तारे शशि दिनकर।

पंखों से रे, फैले फैले ताड़ों के दल
लंबी लंबी अंगुलियाँ हैं चौड़े करतल!
तड़ तड़ पड़ती धार वारि की उन पर चंचल,
टप टप झरतीं कर मुख से जल बूंदें झलमल।

नाच रहे पागल हो ताली दे दे चल दल
झूम झूम सिर नीम हिलातीं सुख से विह्वल!
हरसिंगार झरते, बेला कलि बढ़ती पल पल,
हंसमुख हरियाली में खग कुल गाते मंगल?

दादुर टर टर करते, झिल्ली बजती झन झन
म्यांउ म्यांउ रे मोर, पीउ पिउ चातक के गण!
उड़ते सोन बलाक आर्द्र सुख से कर क्रंदन,
घुमड़ घुमड़ घिर मेघ गगन में करते गर्जन।

वर्षा के प्रिय स्वर उर में बुनते सम्मोहन
प्रणयातुर शत कीट विहग करते सुख गायन!
मेघों का कोमल तम श्यामल तरुओं से छन,
मन में भू की अलस लालसा भरता गोपन।

रिमझिम रिमझिम क्या कुछ कहते बूंदों के स्वर,
रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अंतर!
धाराओं पर धाराएँ झरतीं धरती पर,
रज के कण कण में तृण तृण की पुलकावलि भर।

पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन
आओ रे सब मुझे घेर कर गाओ सावन!
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन,
फिर फिर आए जीवन में सावन मन भावन!


           (साभार एवं सौजन्य - हिंदी कवी -सुमित्रानंदन पंत)
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            (संदर्भ-अमरउजाला.कॉम /काव्य /कविता)
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-----संकलन
-----श्री अतुल एस परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-08.08.2021-रविवार.