सावन कविता - "मनमयूर लो नचा गई"

Started by Atul Kaviraje, August 16, 2021, 05:36:49 PM

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Atul Kaviraje

मित्रो,

     हिंदी कविता के कवी श्री - हरिहर झा, की कविता आपको सुनाता  हू. यह कविता सावन (वर्षा ऋतू ) पर आधारित है. हिंदी कविता का मेरा यह (पुष्प-8) आपको सप्रणाम सादर करता हू. इस कविता के बोल है - "मनमयूर लो नचा गई"


                              हिंदी कविता-(पुष्प-8)
                                   सावन कविता
                              "मनमयूर लो नचा गई"
                                 कवी -हरिहर झा
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मनमयूर लो नचा गई-----
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मनमयूर लो नचा गई
रिमझिम यह बरसात
लिखी किसी के भाग्य मे
आँसू की सौगात
भीगा सावन प्यार में
जल में भीगा बदन
सजनी साजन से करे,
कैसे प्रणय-निवेदन?

छम-छम पायल बज उठे
चूड़ी बजती खनखन
बोल नहीं पाते अधर,
झूमता आया पवन.

कानों में कुछ कह गया प्यारी-प्यारी बात
मनमयूर लो नचा गई,
रिमझिम यह बरसात.

पिया बिना बरसात में
काटी रतियाँ जाग
वेणी फूलों से लदी,
डसती जैसे नाग.

अंगारों-सा क्यों लगे
हरा-भरा यह बाग
तन जल में मन जल उठे,
पानी मे यह आग.

काँटे दिल तक ना चुभे
दी गुलाब ने मात
लिखी किसी के भाग्य मे,
आँसू की सौगा़त.

डूब गया घरबार सब
बहा गई लंगोट
किया बसेरा फटी हुई,
चादर की ले ओट.

हेलीकोप्टर आ गए
नेता माँगे वोट
आंसू मगरमच्छ के,
दिल पर करते चोट.

फंड हजम कर रो रही
जनता को दी लात
लिखी किसी के भाग्य में,
आँसू की सौगात।


                 कवी-हरिहर झा
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                 (साभार एवं सौजन्य-हिंदीपोएम.ऑर्ग)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-16.08.2021-सोमवार.