सावन कविता - "भीगा दिन"

Started by Atul Kaviraje, September 01, 2021, 01:49:01 AM

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Atul Kaviraje

मित्रो,

     हिंदी कविता के  कवी श्री -गिरिजा कुमार माथुर, की कविता आपको सुनाता  हू. यह कविता सावन (वर्षा ऋतू ) पर आधारित है. हिंदी कविता का मेरा यह (पुष्प-22)आपको सप्रणाम  सादर करता हू. इस कविता के बोल है - "भीगा दिन"


                             हिंदी कविता-(पुष्प-22)
                                  सावन कविता
                                   "भीगा दिन"
                           कवी -गिरिजा कुमार माथुर
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भीगा दिन-----
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भीगा दिन
पश्चिमी तटों में उतर चुका है
बादल-ढकी रात आती है
धूल-भरी दीपक की लौ पर,
मंद पग धर।

गीली राहें धीरे-धीरे सूनी होतीं
जिन पर बोझल पहियों के लंबे निशान है,
माथे पर की सोच-भरी रेखाओं जैसे।

पानी-रँगी दिवालों पर
सूने राही की छाया पड़ती
पैरों के धीमे स्वर मर जाते हैं,
अनजानी उदास दूरी में।

सील-भरी फुहार-डूबी चलती पुरवाई
बिछुड़न की रातों को ठंडी-ठंडी करती
खोये-खोये लुटे हुए खाली कमरे में
गूँज रहीं पिछले रंगीन मिलन की यादें
नींद-भरे आलिंगन में चूड़ी की खिसलन,
मीठे अधरों की वे धीमी-धीमी बातें।

ओले-सी ठंडी बरसात अकेली जाती
दूर-दूर तक
भीगी रात घनी होती हैं
पथ की म्लान लालटेनों पर
पानी की बूँदें
लंबी लकीर बन चू चलती हैं
जिन के बोझल उजियाले के आस-पास
सिमट-सिमट कर,
सूनापन है गहरा पड़ता I

दूर देश का आँसू-धुला उदास वह मुखड़ा
याद-भरा मन खो जाता है
चलने की दूरी तक आती हुई,
थकी आहट में मिल कर।


                    कवी -गिरिजा कुमार माथुर
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                 (साभार एवं सौजन्य-हिंदीपोएम.ऑर्ग)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-01.09.2021-बुधवार.