II श्री शनी देवाय नमः II-शनिदेवाचा पोवाडा -"अभिनंदन शनिदेवाला"

Started by Atul Kaviraje, September 11, 2021, 03:12:04 PM

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Atul Kaviraje

                                  II श्री शनी देवाय नमः II
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     आज शनिवार. श्री शनी देवाचा वार. आज ऐकुया, शनिदेवाचा पोवाडा . पोवाडा गायला आहे श्री.त्यागराज  खाडिलकर  यांनी आणि या पोवाड्याचे  बोल आहेत - "अभिनंदन  शनिदेवाला"

           
                                    शनिदेवाचा  पोवाडा
                                  "अभिनंदन  शनिदेवाला"
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अभिनंदन  शनिदेवाला
ज्याने  जो  मार्ग  दर्शविला
सत्य  असत्याचा  परिणाम
परिसरात  दर्शविला I

दुसरे  वंदन  हात  जोडुनी
उदासी  महाराजाला
अहर्निश  सेवा  करुनि  ज्याने
महत्त्व  जगाला  दाविले , जी  जी  जी  जी, हा I

घोडेगाव  जवळ  नगर  जिल्ह्यात
पानसपुरी  तीरी  शिंगणापूर  आवारात
ग्रामदेवता  आई  लक्षमीच्या  समवेत
दत्त  प्रभूच्या   सान्निध्यात
फार  वर्षांपासून  उभे  आहेत  नवनाथ
फार  पुरातन  काळाची  गोष्ट  असे
फार  पुरातन  काळाची  गोष्ट  असे
शिंगणापूर  भागात  मुसळधार  वृष्टी  झाली  असे 
आणि  वृष्टीमुळे  पानास  नाल्यात  महापूर  आला  असे
वृष्टीमुळे  पानास  नाल्यात  महापूर  आला  असे ,जी  जी  जी  जी हा
महापूरमध्ये  वाहून  आली  शिळा
अन  अडकली  एका  ठायी  ती  शिळा
गुराखी  मुलांच्या  दृष्टीस    पडली  ती  शिळा , जी  जी , पडली  ती  शिळा, जी  जी  जी  जी, हा  हा I

गुराखी  मुलांनी  डवचले    शिळेस
रुधिर  स्त्राव  झाला , झाला , त्या  शिळेस
भयभीत  होऊन  मुले  पळाली  गावात , जी  जी , पळाली  गावात  जी  जी  जी  जी, हा I

घडलेली  हकीगत  मुलांनी  घरी  सांगितली 
घडलेली  हकीगत  मुलांनी  घरी  सांगितली 
आणि  ती  शिळा  पाहण्यासाठी  झुंबड  सर्व  गावकऱ्यांची  उडाली 
रुधिर  स्त्राव  पाहुनी  सर्वाना  आश्चर्य  झाले  जी  जी , आश्चर्य  झाले , जी  जी  जी  जी, हो I

एके  दिवशी  मध्यरात्रीला
एके  दिवशी  मध्यरात्रीला
दृष्टांत  घडला , एका  भक्ताला
मी  शनिदेव  आलो  स्थानाला
भक्तिभावाने  प्राणप्रतिष्ठा  करा या  स्थानाला  जी  जी , करा या  स्थानाला,  जी  जी  जी  जी, हे I

दृष्टांताप्रमाणे  ग्रामस्थ  गेले 
दृष्टांताप्रमाणे  ग्रामस्थ  गेले 
मूर्ती  आणण्यास  प्रयत्न  केले
पण  मूर्ती  जागची  नाही  हलली
अनेकांनी  अनेक  प्रकारचे  प्रयत्न  करून  पहिले
मूर्ती  हलविण्यासाठी
पण  मूर्ती  जागची  तसूभर  देखील  नाही  हलली
आणि  मग  निराश  होऊन  ग्रामस्थ  मागे  फिरले
निराश  होऊन  ग्रामस्थ  मागे  फिरले  जी  जी , मागे  फिरले,  जी  जी  जी  जी, है I

दुसऱ्या  दिवशी  मध्यरात्रीला
दृष्टांत  झाला  त्याच  भक्ताला
सख्खे  मामा  भाच्यांनी  घेऊन  जावे  मला
सख्खे  मामा  भाच्यांनी  घेऊन  जावे  मला
मामा  भाच्यांनी  आणून  स्थापना  केली  स्थानाला , जी  जी , केली  स्थानाला,  जी  जी  जी  जी, हे I

दृष्टांत  झालेल्यानी  प्रयत्न  केला
मूर्ती  खाजगी  ठिकाणी  नेण्याला
दृष्टांत  झालेल्यानी  प्रयत्न  केला
मूर्ती  खाजगी  ठिकाणी  नेण्याला
मूर्ती  या  स्थानापुढून  नाही  हलली   
म्हणून  स्थापना  या  या  ठायी  केली , जी  जी , ठायी  या  केली,  जी  जी  जी  जी, है I

अनेकांनी  प्रयत्न  केले
अनेकांनी  प्रयत्न  केले
पण  मंदिरी  यशस्वी  नाही  झाले
आणि  मग  त्या  भाविका  दृष्टान्तामध्ये  सांगितले
त्या  शनिदेवानी , अरे  माझे  मंदिर  उभारू  नका , माझे  मंदिर  उभारू  नका
मग  ग्रामस्थांनी  मंदिराचा  प्रयत्न  नाही  केला
आणि  समोर  मठ  उभारून  त्याच्यावरच  समाधान  मानले
समोर  मठ  उभारून  त्याच्यावरच  समाधान  मानले  जी  जी , समाधान  मानले, जी  जी  जी  जी, हे I

आहे  मूर्ती  चौथऱ्यावर , आहे  मूर्ती  चौथऱ्यावर, तिच्यावर  नाही  मंदिर
हे  जगामधले  वीरळे   स्थान  आहे
मूर्ती  आहे , पण  मंदिर  नाही
स्त्रिया  नाही  जात  चौथऱ्यावर
आणि  विशेष  म्हणजे , येथे  घरांना  नाही  द्वार
हे  आहे  एक  आश्चर्य  जगातील थोर , जी  जी , जगातील  थोर , जी  जी , जगातील  थोर जी जी  जी  जी, हे I

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                                 स्वर - त्यागराज  खाडिलकर
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                  (साभार आणि सौजन्य-संदर्भ-यु ट्यूब-टी-सिरीज भक्ती सागर)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-11.09.2021-शनिवार.