II वर्षा ऋतु (बारिश का मौसम) पर कविता II- बारिश की बूंद क्रमांक-2

Started by Atul Kaviraje, September 12, 2021, 12:14:08 AM

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Atul Kaviraje

                       II वर्षा ऋतु (बारिश का मौसम) पर कविता II
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मित्रो,

     आज भी आसमान काले बादलों  से भरा हुआ है. बारिश का सुहावना मौसम अभी भी अपना रूप दिखा रहा है. अभी भी बुंदा-बांदी जारी है. आईये, मित्रो, इस वर्षा ऋतू से तन -मन भीगोते  हुए सुनेंगे, कुछ कविताये, रचनाये. बारिश की इस बूंद (बूंद क्रमांक-2), के बोल है- "मेघ आये बड़े बन-ठन के"


                                  बारिश का मौसम कविता
                                  बारिश की बूंद क्रमांक-2
                                 "मेघ आये बड़े बन-ठन के"
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मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।

पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बांकीचितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।

बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
'बरस बाद सुधि लीन्ही'
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।

क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
'क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की'
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।


                       (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हिंदी गाईड्स.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-12.09.2021-रविवार.