"अंतरराष्ट्रीय वृद्ध नागरिक दिवस"- वृद्धजन पर कविताएं -कविता क्रमांक-E

Started by Atul Kaviraje, October 01, 2021, 02:21:21 AM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                "अंतरराष्ट्रीय वृद्ध नागरिक दिवस"
                                       वृद्धजन पर कविताएं
                                        कविता क्रमांक-E
                              -------------------------------

मित्रो,

     आज ०१.१०.२०२१-शुक्रवार है. आज  "अंतरराष्ट्रीय वृद्ध नागरिक दिवस" है. आईए, इस सुनहरे अवसर पर सुनते है वृद्धजन पर कविताएं .

वृद्धजन पर कविताएं - अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस-----

ढलती सांझ का दर्शन----


कुछ नये के फेर में ,
अपना पुराना भूल गए ।
देख मन की खाली स्लेट ,
कुछ सोचते से रह गए ।।

ढलती सांझ का दर्शन ,
शिकवे-गिलों में डूब गया ।
दिन-रात की दहलीज पर मन ,
सोचों में उलझा रह गया ।।

दो और दो  के जोड़ में ,
भावों का निर्झर सूख गया ।     
तेरा था साथ  रह गया ,
मेरा सब पीछे छूट गया ।।

🍁 - मीना भारद्वाज
      --------------

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

वृद्ध दिवस पर यह ग़ज़ल----

बूढ़ा दरवेश----

बूढ़ी आंखें जोह रही हैं एक टुकड़ा संदेश
मां- बाबा को छोड़ के बिटवा बसने गया विदेश

घर का आंगन, तुलसी बिरवा और काठ का घोड़ा
पोता-पोती, बहू बिना ये सूना लगे स्वदेश

जीपीएफ से एफडी तक किया निछावर जिस पे
निपट परायों जैसा अब तो वही आ रहा पेश

"तुम बूढ़े हो, क्या समझोगे" यही कहा था उसने
जिस की चिंता करते करते श्वेत हो गए केश

"वर्षा" हो या तपी दुपहरी दरवाजे वो बैठा
बिखरी सांसों से जीवित है जो बूढ़ा दरवेश

🍁 - डॉ. वर्षा सिंह
      -------------

                (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-वर्षांसिंग १ .ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
              -------------------------------------------------- 


-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-01.10.2021-शुक्रवार.