स्त्री सुंदरतेची व्याख्या

Started by Preeti Ghate, October 15, 2021, 03:39:59 PM

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Preeti Ghate

स्त्री  सुंदरतेची  व्याख्या

स्त्री  असावी  जशी
नक्षीदार   डोळे  , ओठ   अन  नाक
लंबेलाट  केस,  गोलागुमटा  रंग
सुमदुर ध्वनी   अन  लयबद्धतेत   गुंतलेल  शरीर
हे  झालं  इतरांसाठी

पण  तिला  हवी  तारबध्दता
उंचध्वनी   अन  नक्षीकाम   केलेलं   स्वतःचे  नाव
सौदऱ्याच्या   परीकक्षेत   व  नियमाच्या   चेष्टेत
जी   तंतोतंत   समावती   तिचं   असते  पूर्ण  इतरांसाठी
पण  तिला  हव्या  रुंदलेल्या  कक्षा  अन  स्वतःची   नियमावरी
असेल  हो   कदाचित,  अशी   स्त्री  इतरांसाठी  अपूर्ण
पण  असती  अशीच  स्त्री  स्वत:हा  मध्ये  पूर्ण

इतरांसाठी  स्त्री  म्हणजे  अश्रूंचा  डोंगर  अज्ञानाचा  गोळा
हवीच  असती  सोबत  तिला  पुरुषाची  रस्तावर   चालताना
समज  हा  पिढयांचा  ,
तिला  ही  असता  हो  दोन  पाय  चालण्यासाठी  अन दोन  हात  मारण्यासाठी
समज   पिढयांचा हे लोक  बाळगतात  ,हात - पाय  दोन्ही  तिचे  गुंडाळतात
मग  होत , कोणत्याना  -कोणत्या   कोपऱ्यात  चिरहरण  तिचे
बातमीचा  बाजार   होतो  इथे
अश्रूंच्या  धारा  तिच्या  वाहत  जातात
बाजार  करणारे  त्यात  हात  -पाय  धूत  राहतात
जातो  मग  हा मुदा  न्यायालयात
खणून –खणून   कोरल्या  जातात  जखमा
संसदेतही   कायदा  बदलण्याची  होते  शिलेगिरी
पण   संसदही   बांधली   जाते  त्याच   कायद्याच्या 

मिळाला  जरी   शेवटी  न्याय   निभयासारखा
पण  आजच्या   द्रौपदीला  पडवणार  नाही  हो
एवढ्या  वर्षाचा  वनवास
ती  तिळ  - तिळ  मरते
त्या  प्रसंगाने  गुदमरून   नाही 
तर  या  समाजात   राहून
हा   समाज,  तिच्या  कपड्यावर   कथन  करणारा
उशीरा  घराच्या  बाहेर  पडरी  म्हणून   ताणे   कसणारा 

म्हणता   येत  नाही
समाज हा विकृत  झाला
बोट  दाखवणाल्याला सोडून
उरलेले  सगळे , प्रकाशजोत  घेऊन  उभे होते
निभया साठी   तिच्या  न्यायासाठी

बस आता , पुरे  झाला  हा  चक्रव्यूह
आता  तरी बदला  स्त्री  सुंदरतेची  व्याख्या
                                                  प्रिती घाटे