पैगाम-कैद......

Started by SHASHIKANT SHANDILE, December 30, 2021, 10:34:39 AM

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SHASHIKANT SHANDILE

एक बगिया में एक पंछी
इकलौता ही रहता था
धीरे धीरे दूर हुए सब
जिनको अपना कहता था

दूर गगन में उड़ता रहता
पंछी वो खुशहाली में
रोता पड़ता गुजर रहा था
वक्त बड़ा बदहाली में

उड़ते उड़ते फसा भंवर में
भंवर जरा अंजाना था
छल कपट की जंजीरों को
उसने अपना माना था

भूलभुलैया से जीवन में
उसको क्या अंजाम मिला
पिंजरे की है कैद सलामत
बस यही पैगाम मिला
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शशिकांत शांडिले (एकांत)
मो.९९७५९९५४५०
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