II मकर-संक्रांति II-कविता क्रमांक-7

Started by Atul Kaviraje, January 14, 2022, 11:36:40 PM

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Atul Kaviraje

                                       II मकर-संक्रांति II
                                         कविता क्रमांक-7
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मित्रो,

     आज दिनांक-१४.०१.२०२२-शुक्रवार है. मकर संक्रान्तिका पुण्य -पावन-त्योहार-पर्व लेकर यह शुक्रवार आया है. बाहर ठंड है. तील-गुड के लड्डू खाकर शरीर में ऊब-गर्मी-स्नेह निर्माण हो रही है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन,कवी-कवयित्रीयोको मकर संक्रांतिकी बहोत सारी हार्दिक शुभेच्छाये. आईए, मकर संक्रांतीके  इस पावन पर्व पर पढते है, कुछ रचनाये, कविताये.

                      मकर संक्रांति कविता

मकर राशि पर सूर्य जब, आ जाते है आज!
उत्तरायणी पर्व का, हो जाता आगाज!!
कनकवो की आपने, ऐसी भरी उड़ान!
आसमान मे हो गये, पंछी लहू लुहान!!
फिरकी फिरने लग गई, उड़ने लगी पतंग!
कनकवो की छिड़ गई, आसमान मे जंग!!
अनुशासित हो कर लडें, लडनी हो जो जंग!
कहे डोर से आज फिर, उडती हुई पतंग!!
कहने को तो देश में, अलग अलग है प्रान्त!
कहीं कहें पोंगल इसे, कहे कहीं सक्रांत!!
उनका मेरा साथ है, जैसे डोर पतंग!
जीवन के आकाश मे, उडें हमेशा संग!!
मना लिया कल ही कहीं, कही मनायें आज!
त्योंहारो के हो गये, अब तो अलग मिजाज!!
त्योहारों में धुस गई, यहां कदाचित भ्राँति!
दो दिन तक चलती रहे, देखो अब संक्राँति!


--राहुल सिंग तन्वर
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-द सिम्पल हेल्प.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-14.01.2022-शुक्रवार.