II मकर-संक्रांति II-कविता क्रमांक-8

Started by Atul Kaviraje, January 14, 2022, 11:38:24 PM

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Atul Kaviraje

                                        II मकर-संक्रांति II
                                          कविता क्रमांक-8
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मित्रो,

     आज दिनांक-१४.०१.२०२२-शुक्रवार है. मकर संक्रान्तिका पुण्य -पावन-त्योहार-पर्व लेकर यह शुक्रवार आया है. बाहर ठंड है. तील-गुड के लड्डू खाकर शरीर में ऊब-गर्मी-स्नेह निर्माण हो रही है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन,कवी-कवयित्रीयोको मकर संक्रांतिकी बहोत सारी हार्दिक शुभेच्छाये. आईए, मकर संक्रांतीके  इस पावन पर्व पर पढते है, कुछ रचनाये, कविताये.

                          मकर संक्रांति कविता


आसमान में चली पतंग
मन में उठी एक तरंग
लाल, गुलाबी, काली, नीली,
मुझको तो भाती है पीली
डोर ना इसकी करना ढीली
सर-सर सर-सर चल सुरीली
कभी इधर तो कभी उधर
लहराती है फर फर फर


--राहुल सिंग तन्वर
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-द सिम्पल हेल्प.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-14.01.2022-शुक्रवार.