II मकर-संक्रांति II-कविता क्रमांक-14

Started by Atul Kaviraje, January 14, 2022, 11:50:11 PM

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Atul Kaviraje

                                       II मकर-संक्रांति II
                                        कविता क्रमांक-14
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मित्रो,

     आज दिनांक-१४.०१.२०२२-शुक्रवार है. मकर संक्रान्तिका पुण्य -पावन-त्योहार-पर्व लेकर यह शुक्रवार आया है. बाहर ठंड है. तील-गुड के लड्डू खाकर शरीर में ऊब-गर्मी-स्नेह निर्माण हो रही है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन,कवी-कवयित्रीयोको मकर संक्रांतिकी बहोत सारी हार्दिक शुभेच्छाये. आईए, मकर संक्रांतीके  इस पावन पर्व पर पढते है, कुछ रचनाये, कविताये.

                        मकर संक्रांति पर कविता


मकर संक्रांति का त्यौहार,
पुरे भारत में मनाया जाता है।
कहीं लोहड़ी तो कहीं पोंगल,
कहीं संक्रांति का त्यौहार।
बड़ा ही पावन और पवित्र,
होता यह त्यौहार।
दान धर्म और पूजा पाठ,
से होता इसका सरोकार।
इस दिन सभी लोग ,
करते है पूजा पाठ।
दही चुरा, लड़ुआ तिलकुट,
सब खाते मिल बाँट।
सभी मिलकर उड़ाते पतंग,
बच्चे हो या बड़े।
कहीं नीली तो कहीं पिली
आसमान में लहराती पतंग
बच्चों के मन को भाती पतंग।
नाम-ममता रानी,राधानगर (बाँका)

हुए सूर्य संक्रमित
आई फिर संक्रान्ति
देने नया उत्साह
भरने नया हर्ष
मन में कृषक के।
उड़ेंगे पतंग
ले जाएंगे अपने साथ
कृषक की तमाम अर्ज़ियाँ
सूर्य के पास
जितना ऊँचा उठेंगे पतंग
उतना ही बढ़ेगा उत्साह कृषक का।
जब कभी हतोत्साहित होगा कृषक
तो पुकारेगी पतंग
ठहरो कृषक!
करो तैयारी आएगा नया वर्ष
जब पुनः करोगे गान
होगा स्वर्ण विहान
करो तैयारी फिर से
नया बीज बोने की।


            (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-xn--11ba5f4a5ecc.xn--h2brj9c)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-14.01.2022-शुक्रवार.