II मकर-संक्रांति II-कविता क्रमांक-17

Started by Atul Kaviraje, January 14, 2022, 11:55:49 PM

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Atul Kaviraje

                                     II मकर-संक्रांति II
                                      कविता क्रमांक-17
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मित्रो,

     आज दिनांक-१४.०१.२०२२-शुक्रवार है. मकर संक्रान्तिका पुण्य -पावन-त्योहार-पर्व लेकर यह शुक्रवार आया है. बाहर ठंड है. तील-गुड के लड्डू खाकर शरीर में ऊब-गर्मी-स्नेह निर्माण हो रही है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन,कवी-कवयित्रीयोको मकर संक्रांतिकी बहोत सारी हार्दिक शुभेच्छाये. आईए, मकर संक्रांतीके  इस पावन पर्व पर पढते है, कुछ रचनाये, कविताये.

                     मकर संक्रांति पर कविता


काट ना सके कभी कोई पतंग आप की
टूटे ना कभी डोर आपके विश्वास की
छु लो आप ज़िन्दगी की सारी कामयाबी
जैसे पतंग छूती है ऊंचाईया आसमान की |

सब दोस्तों को मिले सहमती
आज है मकरसंक्रांति
स्वीट दोस्त उग गये दिनकर
उडाए पतंग हम सुब मिलकर
आकाश हो पतंग से अट्टे
सुनाओ वो मारा वो काटा I

सोचा किसी अपने से बात करे
अपने किसी खाश को याद करे
किया जो फैसला मकरसंक्रांति की सुभकामनाये देने का
दिल ने कहा क्यों न अपने से शुरुवात करे |

मंदिर की घंटी
आरती की थाली
नदी के किनारे
सूरज की लाली
ज़िन्दगी में आये
खुशियों की बहार
मुबारक हो आपको
मकरसंक्रांति का यह त्यौहार I

कामना है कि आप भी उचांईयों को छूए
आसमान में उड़ने वाली पतंग के जैसे
आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति
की ढेर सारी शुभकामनाएं।

मीठी बोली
मीठी जुबान
मकरसंक्रांति
का है ये ही
पैगाम I


          (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-xn--11ba5f4a5ecc.xn--h2brj9c)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-14.01.2022-शुक्रवार.