II मकर-संक्रांति II-कविता क्रमांक-24

Started by Atul Kaviraje, January 15, 2022, 05:19:34 PM

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Atul Kaviraje

                                      II मकर-संक्रांति II
                                       कविता क्रमांक-24
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मित्रो,

     कल  दिनांक-१४.०१.२०२२-शुक्रवार था. मकर संक्रान्तिका पुण्य -पावन-त्योहार-पर्व लेकर यह शुक्रवार आया है. बाहर ठंड है. तील-गुड के लड्डू खाकर शरीर में ऊब-गर्मी-स्नेह निर्माण हो रही है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन,कवी-कवयित्रीयोको मकर संक्रांतिकी बहोत सारी हार्दिक शुभेच्छाये. आईए, मकर संक्रांतीके  इस पावन पर्व पर पढते है, कुछ रचनाये, कविताये.

                       मकर संक्रांति पर कविता


आसमान में उड़ी पतंग,
बादल से जा जुड़ी पतंग।
छोटी-मोटी, बड़ी पतंग,
हीरे जैसी बड़ी पतंग।

पीले, नीले, लाल, गुलाबी,
कितने रंग में रंगी पतंग।
नीचे-ऊपर, ऊपर-नीचे,
लहरा-लहरा, जमी पतंग।

जितनी ढील उसे दी हमने,
उतनी सिर पर चढ़ी पतंग।
कोई खेंचे, कोई लपेटे,
पेंच लड़ाने जुटी पतंग।

आकर जो उससे टकराई,
हवा-हवा में लड़ी पतंग
बच्चों के दिल को बहलाती,
कभी डोर से कटी पतंग।

हम सबके भी मन को भाती,
सात रंगों में रंगी पतंग।


--अशोक शास्त्री 'अनंत'
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                       (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अजबगजब.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-15.01.2022-शनिवार.