II मकर-संक्रांति II-कविता क्रमांक-31

Started by Atul Kaviraje, January 15, 2022, 05:35:27 PM

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Atul Kaviraje

                                        II मकर-संक्रांति II
                                         कविता क्रमांक-31
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मित्रो,

     कल  दिनांक-१४.०१.२०२२-शुक्रवार था. मकर संक्रान्तिका पुण्य -पावन-त्योहार-पर्व लेकर यह शुक्रवार आया है. बाहर ठंड है. तील-गुड के लड्डू खाकर शरीर में ऊब-गर्मी-स्नेह निर्माण हो रही है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन,कवी-कवयित्रीयोको मकर संक्रांतिकी बहोत सारी हार्दिक शुभेच्छाये. आईए, मकर संक्रांतीके  इस पावन पर्व पर पढते है, कुछ रचनाये, कविताये.

                        मकर संक्रांति पर कविता---


आसमान में चली पतंग मन में उठी एक तरंग
लाल, गुलाबी, काली, नीली,
मुझको तो भाती है पीली
डोर ना इसकी करना ढीली
सर-सर सर-सर चल सुरीली
कभी इधर तो कभी उधर
लहराती है फर फर फर।


                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-न्यु फ्रेशर्स हब.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-15.01.2022-शनिवार.