II माघ गणेश जयंती II-लेख क्रमांक-3

Started by Atul Kaviraje, February 04, 2022, 12:27:13 AM

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Atul Kaviraje

                                       II माघ गणेश जयंती II
                                            लेख क्रमांक-3
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मित्रो,

     आज शुक्रवार,०४ फरवरी ,२०२२. माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को गणेश जयंती के नाम से जाना जाता है. मराठी कविताके मेरे सभी भाई-बहन, कवी-कवयित्रीयोको माघी गणेश जयंती की बहोत सारी हार्दिक शुभकामनाये. आईए, श्री गणेश जी का पूजन नमन करते है, और पढते है, माघी गणेश जयंती पर लेख, महत्त्व, पूजा विधी, कथा, शुभेच्छाये, कविता एवं अन्य जानकारी.

     संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है । माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला व्रत, माघ संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कहलाता है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि जब मन संकटों से घिरा महसूस करे, तो गणेश चतुर्थी का व्रत करें । इससे कष्ट दूर होते हैं और धर्म, अर्थ, मोक्ष, विद्या, धन व आरोग्य की प्राप्ति होती है ।

                   माघ संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा---

     ऋषि शर्मा ब्राह्मण की कथा | पार्वती जी ने पूछा कि हे वत्स! माघ महीने में किस गणेश की पूजा करनी चाहिए तथा इसका क्या नाम है? उस दिन पूजन में किस वस्तु का नैवेध अर्पित करना चाहिए? और क्या आहार ग्रहण करना चाहिए। इसे आप सविस्तार बतलाने की कृपा करे।

     गणेश जी ने कहा कि हे माता! माघ में 'भालचंद्र' नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। इनका पूजन षोडशोपचार विधि से करना चाहिए। हे माता पार्वती! इस दिन तिल के दस लड्डू बना लें। पांच लड्डू देवता चढ़ावे और शेष पांच ब्राह्मण को दान दे देवें। ब्राह्मण की पूजा भक्तिपूर्वक करके, उन्हें दक्षिणा देने के बाद उन पांच लड्डुओं को उन्हें प्रदान कर दें। हे देवी! तिल के दस लड्डुओं का स्वयं आहार करें। इस सम्बन्ध में मैं आपको राजा हरिश्चंद्र का वृतांत सुनाता हूँ।

     सतयुग में हरिश्चंद्र नामक एक प्रतापी राजा हुए थे। वे सरल स्वभाव के एक सत्यनिष्ठ राजा थे। हे देवी! उनके शासन काल में अधर्म नाम की कोई वस्तु नहीं थी। उनके राज्य में कोई अपाहिज, दरिद्र या दुखी नहीं था। सभी लोग आधी व्याधि से रहित एवं दीर्धायु होते थे। उन्हीं के राज्य में एक ऋषिशर्मा नामक तपस्वी ब्राह्मण रहते थे। एक पुत्र प्राप्ति के बाद वे स्वर्गवासी हो गए। पुत्र का भरण-पोषण उनकी पत्नी करने लगी। वह विधवा ब्राह्मणी भिक्षाटन के द्वारा पुत्र का पालन-पोषण करती थी। उस ब्राह्मणी ने माघ मास की संकटा चतुर्थी का व्रत किया।

     वह पतिव्रता ब्राह्मणी गोबर से गणेश जी की प्रतिमा बनाकर सदैव पूजन किया करती थी। हे पार्वती! भिक्षाटन के द्वारा ही उसने पूर्वोक्त रीति से तिल के दस लड्डू बनाये। इसी बीच उसका पुत्र गणेश जी की मूर्ति अपने गले में बांधकर स्वेच्छा से खेलने के लिए बाहर चला गया। तब एक नर पिशाच कुम्हार ने उस ब्राह्मणी के पांच वर्षीय बालक को जबरन पकड़कर अपने आवां में छोड़कर मिटटी के बर्तनों को पकाने के लिए उसमें आग लगा दी। इधर उसकी माता अपने बच्चों को ढूंढने लगी। उसे न पाकर वह बड़ी व्याकुल हुई। वह ब्राह्मणी विलाप करती हुई गणेश जी की पार्थना करने लगी। हे गणेश जी! आप इस दुःखिनी की रक्षा कीजिये। मैं पुत्र के वियोग में व्यथित हूँ। आप मेरी रक्षा कीजिये। वह ब्राह्मणी इसी प्रकार आधी रात तक विलाप करती रही। प्रातःकाल होने पर कुम्हार अपने पके हुए बर्तनों को देखने के लिए आया जब उसने आवां खोल के देखा तो उसमें जांघ भर पानी जमा हुआ पाया और इससे भी अधिक आश्चर्य उसे जब हुआ कि उसमें बैठे एक खेलते हुए बालक को देखा। ऐसी अद्भुत घटना देखकर वह भयवश कांपने लगा और इस बात की सुचना उसने राज दरबार में दी। उसने राज्य सभा में अपने कुकृत्य का वर्णन किया।


--पंकज गोयल
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                        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अजबगजब.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-04.02.2022-शुक्रवार.