II माघ गणेश जयंती II-लेख क्रमांक-4

Started by Atul Kaviraje, February 04, 2022, 12:28:46 AM

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Atul Kaviraje

                                       II माघ गणेश जयंती II
                                            लेख क्रमांक-4
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मित्रो,

     आज शुक्रवार,०४ फरवरी ,२०२२. माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को गणेश जयंती के नाम से जाना जाता है. मराठी कविताके मेरे सभी भाई-बहन, कवी-कवयित्रीयोको माघी गणेश जयंती की बहोत सारी हार्दिक शुभकामनाये. आईए, श्री गणेश जी का पूजन नमन करते है, और पढते है, माघी गणेश जयंती पर लेख, महत्त्व, पूजा विधी, कथा, शुभेच्छाये, कविता एवं अन्य जानकारी.

                       माघ संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा---

     कुम्हार ने कहा- हे महाराज हरिश्चंद्र! मैं अपने दुष्कर्म के लिए वध योग्य हूँ। उसने आगे कहा-हे महाराज! कन्या के विवाह के लिए मैंने कई बार मिटटी के बर्तन पकाने के लिए आवां लगाया। परन्तु मेरे बर्तन कभी नहीं पके और सदैव कच्चे रहे गये। तब मैंने भयभीत होकर एक तांत्रिक से इसका कारण पूछा। उसने कहा कि चुपचाप किसी लड़के की तुम बलि चढ़ा दो, तुम्हारा आवां पाक जायेगा। मैंने सोचा कि मैं किसके बालक की बलि दूँ? जिसके बालक की बलि दूंगा वह मुझे क्योंकर जीवित छोड़ेगा? इसी भय से हे महाराज! मैंने दृढ़ निश्चय किया कि इसे ही बैठाकर आग लगा दूंगा। मैंने अपनी पत्नी से परामर्श किया कि ऋषिशर्मा ब्राह्मण मृत हो गए हैं। उनकी विधवा पत्नी भीख मांगकर अपना गुजारा करती है। अरी! वह लड़के को लेकर क्या करेगी? मैं यदि उसके पुत्र की बलि दे दूँ तो मेरे बर्तन पक जाएंगे। मैं इस जघन्य कर्म को करके रात में निश्चिन्त होकर सो गया। प्रातः जब मैंने आंवां खोलकर देखा तो क्या देखता हूँ कि उस लड़के को मैंने जिस स्तिथि में बैठा गया था, वह उसी तरह निर्भय भाव से बैठा है और उसमे जांघ भर पानी भरा हुआ हैं। इस भयावह दृश्य से मैं काँप उठा और इसकी सूचना देने आपके पास आया हूँ।

     कुम्हार की बात सुनकर राजा बहुत ही विस्मित हुए और उस लड़के को देखने आए। बालक को प्रसन्नता पूर्वक खेलते देखकर मंत्री से राजा ने कहा कि यह क्या बात हैं? यह किसका लड़का हैं? इस बात का पता लगाएं.इस आंवे में जांघ भर जल कहाँ से आया? इसमें कमल के फूल कहाँ से खिल गये? इस दरिद्र कुम्हार के आंवें में हरी-हरी दूब कहाँ से उग गई। बालक को न तो आग की जलन हुई न तो इसे भूख-प्यास ही हैं। यह आंवे में भी वैसा ही खेल रहा हैं, मानो अपने घर में खेल रहा हो। राजा इस तरह की बात कह ही रहे थे कि वह ब्राह्मणी वहां बिलखती हुई आ पहुंची। वह कुम्हार को कोसने लगी। जिस प्रकार गाय अपने बछड़े रंभाती है, ठीक वही अवस्था उस बुढ़िया की थी। वह बुढ़िया बालक को गोद में लेकर प्यार करने लगी और कांपती हुई राजा के सामने बैठ गई।

     राजा हरिश्चंद्र ने पूछा कि हे ब्राह्मणी! इस बालक के न जलने का क्या कारण हैं? क्या तू कोई जादू जानती है अथवा तूने कोई धर्माचरण किया हैं। जिसके कारण बच्चे को आंच तक नहीं आई?

     राजा की बात सुनकर ब्राह्मणी ने कहा कि हे महाराज! मैं कोई जादू नहीं जानती और न तो कोई धर्माचरण, तपस्या, योग दान आदि की प्रक्रिया ही जानती हूँ। हे राजन! मैं तो संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करती हूँ। उसी व्रत के से मेरा पुत्र जीता-जागता बचा हैं। राजा ने सम्पूर्ण नगरवासियों को गणेश जी का व्रत करने का आदेश दिया। इस आश्चर्यजनक घटना के कारण सभी लोग उस दिन से प्रत्येक मास की गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगे। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मणी ने अपने पुत्र के जीवन को पुनः पाया था।

     इतना कहने के बाद श्रीकृष्ण ने कहा कि हे युधिष्ठिर! आप भी इस सर्वोत्तम व्रत को कीजिए। इस व्रत के प्रभाव से आपकी सभी कामनाएं पूर्ण होगी। आप मित्रों, पुत्रों, और पौत्रों को सुख देने वाले साम्राज्य को प्राप्त करेंगे। हे महाराज! जो लोग इस व्रत को करेंगे उन्हें पूर्ण सफलता मिलेगी। भगवान कृष्ण की बात से युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए और माघ कृष्ण गणेश चतुर्थी का व्रत करके निष्कंटक राज्य भोगने लगे।


--पंकज गोयल
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                        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अजबगजब.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-04.02.2022-शुक्रवार.