II महाशिवरात्रि II-निबंध क्रमांक-3

Started by Atul Kaviraje, March 01, 2022, 02:34:34 PM

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Atul Kaviraje

                                           II महाशिवरात्रि II
                                             निबंध क्रमांक-3
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मित्रो,

     आज दिनांक-०१.०३.२०२२ मंगलवार है. आज "महाशिवरात्री" है. "हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ने वाली शिवरात्रि महाशिवरात्रि कहा जाता है।" मराठी कविताके मेरे सभी भाई-बहन कवी-कवयित्रीयोको इस पावन रात्रिकी अनेक हार्दिक शुभकामनाये. आईए, "ओम नमः शिवाय" मंत्र-उच्चारण करें और पढे, इस पावन रात्री पर लेख, कथा, पूजा-विधी, शायरी, शुभकामनाये, निबंध इत्यादी.

                         महाशिवरात्रि पर निबंध---

                    महाशिवरात्रि कैसे मनाई जाती है?---

     महाशिवरात्रि में शिव जी की पूजा व्रत रखकर की जाती हैं। शिवरात्रि में भक्त पूरे दिन व्रत रखते हैं और मन ही मन शिव का जाप करते हैं। शिव पुराण के अनुसार शिवरात्रि का व्रत दिन के चारों पहर में से किसी भी पहर में खोला जा सकता है। लेकिन मान्यता यह है कि शिवरात्रि का व्रत रात में ही खोला जाना चाहिए। इस दिन व्रत रखने वाले स्नान कर मंदिर जाते हैं और उत्तर की ओर मुख करके भगवान शिव की पूजा करते हैं। भक्त पुष्प, चंदन, बेल पत्र, फल, बैर का चढ़ावा भगवान को लगाते हैं और दूध, दही, घी से शिवलिंग का अभिषेक कर दीप और धूप जलाकर भगवान की पूजा करते हैं।

               शिवरात्रि की पूजा में क्या-क्या चढ़ाया जाता है?---

     शिवरात्रि के दिन भगवान शिव के शिवलिंग की पूजा की जाती हैं। इस दिन शिवलिंग पर दूध, दही, घी, शहद आदि से अभिषेक किया जाता है। शिवलिंग का अभिषेक करने के बाद, शिवलिंग पर फूल, चंदन, बेल पत्र, बैर और धतूरा चढ़ाया जाता है। बहुत से लोग इस दिन भगवान को भांग का भी चढ़ावा लगाते हैं। फिर अगरबत्ती और दीए जलाकर भगवान की पूजा की जाती हैं।

     जैसा कि हमने आपको बताया शिवरात्रि मनाने के पीछे कई ऐसी पौराणिक कहानियां है, जिस वजह से प्रत्येक शिव भक्त के लिए महाशिवरात्रि के मायने बेहद खास है। शिवरात्रि का महत्व को समझने में नीचे बताई गई ये कहानी आपके बड़े काम आ सकती हैं।

                    शिवलिंग के रूप में महादेव की पूजा---

     कई पौराणिक कथाओं में ये सुनने को मिलता है कि फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्थी के दिन यानी शिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। उनके इस शिवलिंग स्वरूप का पूजन भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने किया था। तब से आज तक शिवरात्रि के इस पावन दिन के मौके पर भगवान शिव की शिवलिंग स्वरूप की पूजा की जाती हैं। ऐसा भी माना जाता हैं कि शिवरात्रि के दिन भगवान शिव शंकर खुद शिवलिंग में निवास करते हैं।

                     महादेव और माता पार्वती का विवाह---

     इसके अलावा शिवरात्रि मनाने के पीछे सबसे प्रचलित और लोकप्रिय कहानी महादेव और माता पार्वती के विवाह की है। ऐसी मान्यता है कि शिवरात्रि के दिन महादेव ने हिमालय पुत्री पार्वती से विवाह किया था। उस विवाह में देवों के साथ-साथ भूत पिशाच भी सम्मिलित हुए थे। तब से आज तक शिवरात्रि को भोले शिव शंकर माता पार्वती की शादी के सालगिरह के रूप में भी मनाते हैं। शिवरात्रि आते ही मंदिरों को मंडप की तरह सजाया जाता है। कई जगह तो शिवरात्रि के दिन लोगों को शिव और पार्वती बनाकर नाट्य रूपांतरण करके भी दिखाया जाता है। इस कथा में एक मान्यता यह भी है कि शिवरात्रि के दिन यदि कोई कुंवारी कन्या सच्चे मन से शिव का ध्यान करके व्रत रखती हैं। तो उनका विवाह जल्द से जल्द हो जाता हैं।

                   समुद्र मंथन से निकले विषपान की कथा---

     कई कथाओं में ये भी सुनने को मिलता है कि शिवरात्रि के दिन समुद्र मंथन के समय निकले विष को भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा करने के लिए स्वयं पी लिया था। विष पीने के कारण शिव जी कंठ यानी गले का रंग नीला पड़ गया था। उस दिन से भोले शंकर नीलकंठ के नाम से भी पुकारे जाने लगे। शिवजी ने विष पीकर पूरे संसार को बचाया था इसलिए शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की धूमधाम से पूजा की जाती है।


--हिमांशू ग्रेवाल
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                         (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-१० लाईन्स.को)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-01.03.2022-मंगळवार.