II अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस II-लेख क्रमांक-8

Started by Atul Kaviraje, March 08, 2022, 12:16:59 AM

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Atul Kaviraje

                                   II अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस II
                                            लेख क्रमांक-8
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मित्रो,

     आज दिनांक-०८.०३.२०२२, मंगलवार है. यह दिन "जागतिक महिला दिवस" के नाम से भी जाना जाता है. "प्रत्येक वर्ष 8 मार्च पुरे विश्व में महिलाओं के योगदान एवं उपलब्धियों की तरफ लोगो का ध्यान क्रेंदित करने के लिए महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है, महिला दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य नारी को समाज में एक सम्मानित स्थान दिलाना और उसके स्वयं में निहित शक्तियों से उसका ही परिचय कराना होता है।" मराठी कविताके मेरे सभी भाई-बहन, कवी-कवयित्रीयोको इस दिन कि मेरी हार्दिक शुभेच्छाये. आईए पढते है, इस दिन पर लेख, जIनकारी,निबंध,भाषण,शायरी,शुभकामनाये,स्टेटस इत्यादी.

        अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस भाषण (International Women's Day Speech)---

     नारी, यह कोई समान्य शब्द नहीं बल्कि एक ऐसा सम्मान हैं जिसे देवत्व प्राप्त हैं. नारियों का स्थान वैदिक काल से ही देव तुल्य हैं इसलिए नारियों की तुलना देवी देवताओं और भगवान से की जाती हैं. जब भी घर में बेटी का जन्म होता हैं, तब यही कहा जाता हैं कि घर में लक्ष्मी आई हैं. जब घर में नव विवाहित बहु आती हैं, तब भी उसकी तुलना लक्ष्मी के आगमन से की जाती हैं. क्या कभी आपने कभी सुना हैं बेटे के जन्म कर ऐसी तुलना की गई हो? कि घर में कुबेर आये हैं या विष्णु का जन्म हुआ हैं, नहीं. यह सम्मान केवल नारी को प्राप्त हैं जो कि वेदों पुराणों से चला आ रहा हैं जिसे आज के समाज ने नारी को वह सम्मान नहीं दिया जो जन्म जन्मान्तर से नारियों को प्राप्त हैं.

     हमेशा ही नारियों को कमजोर कहा जाता हैं और उन्हें घर में खाना बनाकर पालन पोषण करने वाली कहा जाता हैं, उसे जन्म देने वाली एक अबला नारी के रूप में देखा जाता हैं और यह कहा जाता हैं कि नारी को शिक्षा की आवश्यक्ता ही नहीं, जबकि जिस भगवान को समाज पूजता हैं वहां नारी का स्थान भिन्न हैं. माँ सरस्वती जो विद्या की देवी हैं वो भी एक नारी हैं और यह समाज नारी को ही शिक्षा के योग्य नहीं समझता. माँ दुर्गा जिसने राक्षसों का वध करने के लिए जन्म लिया वह भी एक नारी हैं और यह समाज नारी को अबला समझता हैं. कहाँ से यह समाज नारी के लिए अबला, बेचारी जैसे शब्द लाता हैं एवम नारि को शिक्षा के योग्य नहीं मानता, जबकि किसी पुराण, किसी वेद में नारि की वह स्थिती नहीं जो इस समाज ने नारी के लिए तय की हैं. ऐसे में जरुरत हैं महिलाओं को अपनी शक्ति समझने की और एक होकर एक दुसरे के साथ खड़े होकर स्वयम को वह सम्मान दिलाने की, जो वास्तव में नारी के लिए बना हैं.

     वूमेन डे प्रति वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता हैं. लेकिन आज जो औरत की हालत हैं वो किसी से नहीं छिपी हैं और ये हाल केवल भारत का नहीं, पुरे दुनियाँ का हैं. जहाँ नारि को उसका ओदा नहीं मिला हैं. एक दिन उसके नाम कर देने से कर्तव्य पूरा नहीं होता. आज के समय में नारी को उसके अस्तित्व एवम अस्मिता के लिए प्रतिपल लड़ना पड़ता हैं. यह एक शर्मनाक बात हैं कि आज हमारे देश में बेटी बचाओ जैसी योजनाये हैं, आज घर में बेटी को जन्म देने के लिए सरकार द्वारा दबाव बनाया जा रहा हैं क्या बेटियाँ ऐसा जीवन सोचकर आती हैं जहाँ उसके माँ बाप केवल एक डर के कारण उसे जीवन देते हैं. समाज के नियमो ने समाज में कन्या के स्थान को कमजोर किया हैं जिन्हें अब बदलने की जरुरत हैं. आज तक जो हो रहा हैं उसे बदलने की जरुरत हैं जिसके लिए सबसे पहले कन्या को जीवन और उसके बाद शिक्षा का अधिकार मिलना जरुरी हैं तब ही इस देश में महिला की स्थिती में सुधार आएगा.


--कर्णिका
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-दीपावली.को.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-08.03.2022-मंगळवार.