II होली II-निबंध क्रमांक-8

Started by Atul Kaviraje, March 18, 2022, 01:09:52 PM

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Atul Kaviraje

                                             II होली II
                                          निबंध क्रमांक-8
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मित्रो,

      कल दिनांक-१७.०३.२०२२, गुरुवार था.  "होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिस हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते हैं। प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है। ". हिंदी कविताके मेरे सभी भाई-बहन, कवी-कवयित्रीयोको होली के इस पावन पर्व की अनेक हार्दिक शुभकामनाये. आईए पढते है, लेख, महत्त्व, जIनकारी, निबंध, शायरी, बधाई संदेश, शुभकामनाये एवं अन्य.

                       होली का इतिहास

     होली के त्यौहार का जिक्र पुराने ग्रंथों में भी देखने को मिलता है। इससे हमें होली के त्यौहार का महत्त्व और प्राचीनता का आभास भी होता है। इस त्यौहार को मनाने के पीछे एक बहुत ही प्रसिद्ध कथा है।

     पुरानी कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप नाम का एक बहुत बड़ा राक्षस हुआ करता था। जिसने वर्षों की तपस्या करके भगवान ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर दिया, जिसके बाद ब्रह्मा जी के वरदान स्वरूप हिरण्यकश्यप को ना दिन में ना रात में, ना देवता ना मनुष्य, ना ही कोई जानवर और ना ही किसी प्रकार के हथियार से मारा जा सकता था।
हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता था इसलिए अपनी प्रजा से कहता था कि वह उसकी पूजा करें भगवान विष्णु की पूजा ना करें। वह अपनी प्रजा से क्रूरता पूर्ण व्यवहार करने लगा। प्रजा के कुछ लोग भय वश उसकी पूजा भी करने लगे।

     समय बीतने के साथ ही हिरण्यकश्यप के घर एक बेटा पैदा हुआ जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। प्रहलाद बचपन से ही भगवान विष्णु का भक्त था। प्रह्लाद हिरण्यकश्यप को ईश्वर नहीं मानता था। बहुत समझाने पर भी वह नहीं समझा तो हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के कई उपाय किये, पर वह नहीं मरा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि उसे किसी भी प्रकार की आग जला नहीं सकती है इसलिए उसने अपने भाई का साथ देते हुए प्रहलाद को लेकर जलती हुई आपकी चिता में बैठ गई।
प्रहलाद यह देखकर घबरा गया और भगवान विष्णु की पूजा करने लगा। भगवान विष्णु की ऐसी कृपा हुई थी प्रहलाद को एक खरोच तक नहीं आई और होलिका जलकर भस्म हो गई। इसी के बाद से होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।

                    होली मनाने की तैयारियाँ

     होली से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन होता है। जिसमें लकड़ी, घास और गाय के गोबर से बने कंडे इकट्ठे करते है। संध्या के समय महिलाओं द्वारा होली की पूजा की जाती है, लोटे से जल अर्पण किया जाता है। इसके बाद शुभ मुहूर्त देखकर होलिका दहन कर दिया जाता है जैसे ही आग की लपटें बढ़ने लग जाती हैं, प्रहलाद के प्रतीक वाली लकड़ी को निकाल दिया जाता है, और दर्शाया जाता है कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत ही होती है। होलिका दहन के दौरान सभी इसके चारों ओर घूमकर अपने अच्छे स्वास्थ्य और यश की कामना करते है, साथ ही सभी बुराई को इसमें भस्म करते है।

     होलिका दहन के अगले दिन रंगों का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन बच्चे आपस में एक दूसरे को रंग लगाते हैं और सब की शुभकामनाएं लेते हैं और सब को बधाई देते हैं। फिर क्या बच्चे और क्या बड़े सभी पड़ोसियों और प्रियजनों के साथ पिचकारी और रंग भरे गुब्बारों से खेलना शुरु कर देते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर रंग गुलाल लगाते साथ ही मजेदार पकवानों का आनंद लेते हैं।

                          होली के त्यौहार का महत्व

                होली का ऐतिहासिक महत्व –

     होली के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी इसलिए लोगों को इस त्यौहार से शिक्षा मिलती है कि चाहे बुराई कितनी भी बड़ी क्यों ना हो, हमेशा अच्छाई की जीत होती है इसलिए वह हमेशा अच्छे रास्ते को ही अपनाए।

             सामाजिक महत्व –

     होली एक सौहार्दपूर्ण त्यौहार है। जिसमें लोग वर्षों पुरानी दुश्मनी, लड़ाई, झगड़ा भुलाकर एक दूसरे से गले मिल जाते हैं, इसीलिए इस त्यौहार को दोस्ती का भी प्रतीक कहा गया है। इस दिन समाज में कोई ऊंच-नीच नहीं देखता। सभी लोग एक दूसरे को गले लगा कर होली का त्यौहार मनाते हैं। इसे समाज में ऊंच-नीच की खाई कम होती है इसलिए यह त्यौहार सामाजिक महत्व भी रखता है।


--AUTHOR UNKNOWN
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                        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-यश cds.नेट)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-18.03.2022-शुक्रवार.