विदारक चारोळ्या-"ढगफुटीने पाऊस शेतात पडला,शेतकरी धाय मोकलून रडला"

Started by Atul Kaviraje, April 05, 2022, 10:34:51 PM

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Atul Kaviraje

                विषय : शेतकऱ्याच्या  शेतात  पाणीच  पाणी
                      वास्तव  विदारक  दुःखद  चारोळ्या
      "ढगफुटीने पाऊस शेतात पडला,शेतकरी धाय मोकलून रडला"
                                   (भाग-2)
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(6)
पिकांवरून  रोलर  फिरवीत  होता , पाऊस  नसताना
"शेतच्या  शेत"  उद्ध्वस्त  करीत  होता  स्वहस्ताने
आज  पाण्याचे  लोटच्या  लोट  वहाताहेत ,
निसर्गच  वाहून  नेतोय  "शेत" , आपल्या  सहस्त्र -कराने   .

(7)
"शेतकरी"  कालही  कमनशिबी  होता
"शेतकरी"  आजही  दुर्दैवी  आहे
"शेतकरी"  उद्याही  दुःखीच  असेल ,
गळ्याभोवतीचा  त्याचा  फास  कधीही  न  चुकेल  ?

(8)
निसर्गापुढे  मानव  नेहमीच  हतबल
त्याच्या  रौद्र  रुपापुढे  चालत  नाही  कुठलेच  बल
कोप  निसर्गाचा  असाच  होत  राहील  यापुढेही ,
समतोल  राखणे  आहे , आपल्याच  हाती  यापुढेही .

(9)
पाऊस  आज  नावालाही  नाहीय
आभाळ  कसे  स्वच्छ , निरभ्र  आहे
काल  वाहून  गेलेल्या  "शेताकडे" , "शेतकरी" ,
चिंताक्रात , डोक्यास  हात  लावून  बसला  आहे .

(10)
पाऊस  ढगफुटीने  धो  धो  बरसलाय
सारं  सारं  काही  पुरात  वाहून  गेलंय
पण , कालचा  गळफास  घेणारा  "बळीराजा" ,
आज  पुन्हा  एकदा  कंबर  कसून  उभा  राहिलाय  !


-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.04.2022-मंगळवार.