वास्तव चारोळ्या-चहाच्या टपरीवर वृद्धांची संगत, उर्वरित आयुष्याला आलीय रंगत

Started by Atul Kaviraje, April 10, 2022, 07:38:10 PM

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Atul Kaviraje

              विषय : चहाच्या  टपरीवरल्या  वृद्धांचे  मनोगत
                      वृद्धांचे  वास्तव  जीवन  चारोळ्या
      "चहाच्या टपरीवर वृद्धांची संगत, उर्वरित आयुष्याला आलीय रंगत"
                                (भाग-2)
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(6)
त्यांचे  अनुभव  ऐकत  "टपरीचे"  दिवस  चाललेत
रोज  नवीन  अनुभवी  "वृद्ध" -तरुणांची  भर  पडतेय
"चहा  टपरीच्या"  मालकाला  दिवस  चांगले  आलेत ,
पण  "टपरीचे"  सारं  लक्ष  फक्त  त्यांच्या  बोलण्यातच  गुंतलेय .

(7)
मरण  केव्हा  येईल  ते  सांगता  येत  नाही
आजचा  तर  दिवस  छान  गेलाय
घेऊया  जगून  होता  होईल  तितके ,
"टपरीवरील  वृद्ध"  मंडळी  बोलत  होते  इतके .

(8)
गप्पा  रंगल्या  होत्या  "चहा  टपरीवर"
उजळणी  होत  होती  अनुभवांची  वारंवार
सुख -दुःखाचा  पाढा  पढला  जात  होता ,
प्रत्येकजण  आज  या  "टपरीवर"  भाव -विवश  होत  होता .

(9)
"चहाची  टपरी'  प्रत्येकास  न्याहाळत  होती
त्यांना  अनुभवाची  शिदोरी  सोडताना  पहात  होती
त्यांच्या  डोळ्यांत  आसू  नव्हते , हसू  दिसत  होते  तिला ,
त्यांची  अजूनही  जगण्याची  जिद्द  ती  पहात  होती .

(10)
आज  प्रत्येकजण  प्रत्येकाचा  आधारच  होता
नियतीचा  हा  अनोखा  सारा  खेळ  होता
कोण  नाही  कोणाचा , इथे  भेटत  होता ,
त्यांच्या  भेटी -गाठीचा  सुवास  साऱ्या  "टपरीभर"  पसरला  होता .


-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-10.04.2022-रविवार.