राजकारणी मार्मिक चारोळ्या-पहा माझी जीभ घसरली,अप-शब्दांची लाखोली बाहेर पडली

Started by Atul Kaviraje, May 14, 2022, 12:42:15 AM

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Atul Kaviraje

                 विषय : भाषण  करताना  नेत्यांची  घसरलेली  जीभ
                        वास्तव  राजकारणी मार्मिक  चारोळ्या
           "पहा माझी जीभ घसरली,अप-शब्दांची लाखोली बाहेर पडली"
                                     (भाग-2)
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(6)
"जिभेचे"  लाड  इतके  बरे  नव्हेत
आपल्या  काबूतच  हे  इंद्रिय  हवे
मेंदूने  आज्ञा  दिली  म्हणून  काय  झाले  ?
उच्चIरलेल्या  शब्दांना  विचारांचे  कोंदण  हवे  !

(7)
फक्त  "घसरलेल्या  जिभेमुळे"  हे  घडले
याचा  प्रत्यय  पुन्हयांदा  येऊ  नये
वेळीच  उगा  राहिलेले  असते  बरे ,
म्हणतात  ना  " मौनं  सर्वार्थ  साधनं ".

(8)
"जिभेवर"  सरस्वती  वास  करते  असे  म्हणतात
माणसाचे  अंतरंग  त्याच्या  बोलण्यातून  जाणवते
पण  मनात  एक  अन  "जिभेवर"  दुसरे  असे  नको ,
मग  आपले  मन  आपल्यालाच  खात  रहाते .

(9)
आजपासून  एक  प्रतिज्ञा  घेऊया  आपण  सारे
चालू  देणार  नाही  यापुढे  "जिभेचे"  नखरे
"घसरू"  कधीच  देणार  नाही  तिला  आपण ,
झाले  गेले  विसरून  गुण्या -गोविंदाने  राहूया  सारे .

(10)
आज  सारे  नेते  एकाच  बैठकीत  होते
"जीभ  घसरण्याचे"  प्रकरण  केव्हाच  थांबले  होते
केव्हातरी  "घसरत"  असणाऱ्या  "जीभेस"  आज  काबूत  ठेवून ,
ते  त्याच  "जिभेने"  समोरील  पंच -पक्वानांचे  रस -ग्रहण  करीत  होते .



-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-14.05.2022-शनिवार.