मला आवडलेल्या चारोळ्या-चारोळी क्रमांक-19

Started by Atul Kaviraje, June 10, 2022, 12:30:47 AM

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Atul Kaviraje

                                     मला आवडलेल्या चारोळ्या
                                         चारोळी क्रमांक-19
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     --नवं  चारोळीकारास  पाऊस  प्रिय  आहे . त्याला  रंगीबेरंगी  इंद्रधनुष्य  आवडत . पावसाळ्यात  येणारे  सारे  सण  आवडतात . मुखत्त्वे  श्रावण  सण . श्रावण -सरी  बरसल्या  की  तो  उत्फुल्ल  होतो , उल्हसित  होतो . यासाठी  मात्र  त्याला  वर्षभर  वाट  पाहावी  लागते . एकदा  का  हा  दिन  पहिला , की  तो  चातकासारखा  खुश  होतो , उत्साही  होतो . सरींचे  तुषार  सर्व  अंगभर  घेताना , त्याचा  चेहरा  एखाद्या  लहान  मुलाप्रमाणे  खुलतो , फुलतो . त्याचे  मन  उभारी  घेते , तो  एक  दिव्य  अनुभव  असतो . तो  पुढे  म्हणतो , कि  श्रावण  म्हणजे  बहार , कळ्यांना  आकार  देणारा  कलाकार . फुले  फुलतात , गंध  दरवळतो , पखरतो , पसरतो . आणि  सर्वांचे  मन  मोहित  करतो . तो  प्राजक्त , पारिजातक  तर  एवढा  फुलतो , कि  सारे  झाड , फांदी  न  फांदी  बहरुन  येते . फक्त  प्राजक्त  फुलोराच  दिसून  येतो . मन  मोहून  टाकणारे  हे  दिवस . बहुतेक  हा  प्राजक्तही  माझ्याप्रमाणे  पावसाची , श्रावण -सरींची  उत्कटतेनं  प्रतीक्षा  करीत  असतो .

     हे  दिवस  पाहण्यासाठी  ही  सृष्टीही  उतावीळ  असते . त्यासाठी  तिलाही  वर्षभर  वाट  पाहावी  लागते . रखरखीत  ऊन , थंडीचा  कडाका , या  सर्वांतून  पार  पडून  हा  निसर्ग , आपल्या  आवडत्या  वर्षा -राणीची  आपलेपणाने   वाट  पाहत  असतो . ही  सृष्टी , हा  निसर्ग , पावसाकडे  डोळे  लावून   असतो . वर्षभर  तो  एक  जणू  नवसच  करून  असतो , की  कधी  एकदा  वर्षा -राणी  येते, बरसते  , सारीकडे  बहार  येतो , आणि  आपला  नवस  पूर्ण  होतो . आणि  हा  नवस  ही  सृष्टी  फुललेल्या  पारिजातकाच्या  फुलोऱ्याने  फेडते , असं  या  चारोळीकारास  वाटतं . एकदा  का  हा  प्राजक्त  बहरुन  आला , की  तीचा  नवस  पूर्ण  होतो . ज्या  क्षणासाठी  ती  आतुर  असते   , तो  तर  तिच्या  समोर  असतो , तिच्या  अंगा -खांद्यावर  प्राजक्त -रूपाने  फुलतं  असतो ,खुलतं  असतो . आणि  हे  डोळ्यांचे पारणे फेडणारे  दृश्य  पाहून  ती  आपला  नवसच  जणू  फेडून  टाकते . जे  या  चारोळीकारच्या  दृष्टीस  पडतं , ते  आपल्या  दृष्टीस  का  बरं  पडू  नये  ? बहुतेक  या  सृष्टीचे  त्याला  वरदान  प्राप्त  झालंय , असंच  वाटत .

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श्रIवण म्हणजे मला वाटतं
प्राजक्ताचे दिवस
सृष्टीने कधीतरी करून
फेडलेला नवस
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--नव-चारोळीकार
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                       (साभार आणि सौजन्य-संदर्भ-महाराष्ट्रीयन.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-10.06.2022-शुक्रवार.