मला आवडलेल्या चारोळ्या-चारोळी क्रमांक-27

Started by Atul Kaviraje, June 25, 2022, 12:50:15 AM

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Atul Kaviraje

                                    मला आवडलेल्या चारोळ्या
                                       चारोळी क्रमांक-27
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     --नवं -चारोळीकाराचा  हा  प्रेमी  नायक  प्रेमात  पडला  आहे . अगदी  एकाकी  जीवन  तो  आजवर  जगत  आला  आहे . कुठे  जाणे  नाही , काही  हौस  मौज  नाही . मोजकेच  बोलणे , शिस्तबद्ध  वागणे , सीमित  बोलणे , चाकोरीतच  राहणे . आजवर  तो  असाच  वागत  आला , असाच  जगत  आला . पण  कसं  काही  माहित  नाही , त्याच्या  जीवनात  आज  एक  आमूलाग्र  बदल  घडून  आला  आहे . अगदी  साधं  जीवन  जगणारा  तो  चक्क  प्रेमात  पडला  आहे . त्याला  ती  मुलगी  अतिशय  आवडली  आहे . मुख्य  म्हणजे , त्याच्या  नियमांत  बसणारी  अशी  ती  आहे . तीही  त्याच्या  या  स्वभावावर  फिदा  आहे . म्हणून  तर  त्याच्या  प्रेमात  पडली  आहे .

     पण  खरी  गम्मत  तर  पुढे  आहे . तिचाही  स्वभाव  अगदी  त्याच्यासारखाच  आहे . अगदी  एकमेकांना  अनुरूप  अशीच  ही  जोडी  आहे . बहुतेक  देवाने  स्वर्गात  या  दोघांची  गाठ , आधीच  मारून  ठेवली  असावी . तीही  त्याच्यासारखी , मितभाषी , अबोल  अशीच  आहे . तेव्हा  या  प्रेमाची  सुरुवात , त्यांचे  एकमेकांशी  बोलणे  कधी सुरु  होणार ,आणि  मुख्यत्वेकरून  आधी  ते  कोण  सुरु  करणार , हाच  तर  मुख्य  प्रश्न  आहे . खरं  म्हणजे  त्या  दोघांना  खूप  काही  बोलायचं  आहे , खूप  काही  सांगायचं  आहे . पण  ही  सलज्जता , अबोलत्व,  दोघांचेही,  आड  येऊ  पाहताहेत . 

     मी  आधी  बोलू  का  तू  आधी  बोलतेस , यातच  अनेक  दिवस  अन  रात्रीही  दोघांच्या  अश्याच  निघून  गेल्या  असाव्यात , बहुधा . असं  म्हणतात  ना  "पहले  आप , पहले  आप ", करता  करता  ट्रेन  निघून  गेली  बरं . तर  सांगायची  गोष्ट  म्हणजे , हे  सांगू  की ते  सांगू , करता  करता , सांगता  सांगता , सारं  सांगायचंच  राहून  गेलं . मनातलं  सारं  मनातच  राहिलं . ओठांवर  येत  येत  ते  पुन्हा  मनात  साठून  राहिलं, साचून राहिलं . शब्दांच्या  रूपाने  ते  प्रकट  होऊ  शकलं  नाही . शेवटी  प्रेमी  म्हणतोय , आता  बोलायची  काहीही  गरज  नव्हती . तिच्या  मनातले  ओळखण्याची  क्षमता  हळू  हळू  माझ्यात  येऊ  लागली  होती . इतक्या  वर्षांचा  मला  सारा  अनुभव  होता .तिचे  ते  मूक  शब्द , तिच्या  डोळ्यांत  प्रकट  होणारे  प्रेम , प्रेम -भाव  माझ्या  डोळ्यांनीच  टिपले  होते , अन मी  काय  समजायचे  ते  समजलो  होते . आता  यापुढे  शब्दांची  काहीही  आवश्यकता  नव्हती . तिचे थरथरणारे  ओठ , अन  बोलके  डोळे  यांनी  मला  तिच्या  मनातले  सगळे  सांगितले  होते . आता  यापुढे  असंच  सुरु  राहणार  होते . आणि  पुन्हा  नव्याने  आमचा  हा  अजब  अबोल  संसार  सुरु  झाला  होता .

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हे  सांगू  की  ते  सांगू  करत
तेच  तर  सांगायचं  राहिले
तिचे  ते  मुके  शब्द  मी
माझ्या  मुक्या  डोळ्यांनीच  पहिले
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--नव-चारोळीकार
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                       (साभार आणि सौजन्य-संदर्भ-इन मराठी.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-25.06.2022-शनिवार.