वर्षा ऋतु कविता-कविता-पुष्प-9-घन गरजत बरसत है मिहरा

Started by Atul Kaviraje, August 01, 2022, 01:05:41 AM

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Atul Kaviraje

                                     "वर्षा ऋतु कविता"
                                       कविता-पुष्प-9
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मित्रो,

     आईए मित्रो, सुनते है, पढते है, इस मन-भावन वर्षा ऋतू की कुछ सर्वोत्तम रचनाये. कविता-कोश आपके लिये लाये है, नवं-कवी, श्रेष्ठ कवी, सर्व-श्रेष्ठ कवी, नामचीन-नामांकित, कवी-कवयित्रीयोकी मन-भावन कविताये, रचनाये जिसे पढकर आपका मन आनंद-विभोर हो जायेगा, पुलकित हो जायेगा, उल्हसित हो जायेगा. इन  कविताओकी हल्की, गिली बौछारे आपके तन-मन को भिगो कर एक सुखद आनंद देगी, जो आपको सालो साल याद रहेगी. आईए, तो इन बरसते -तुषारो मे भिग कर कविता का अनोखा आनंद प्राप्त करते है.

                                 "घन गरजत बरसत है मिहरा"
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घन गरजत बरसत है मिहरा
बिजरी चमके डर मोहि लागे, प्यारा लगेरी मिहरा
दादुर मोर पपिहरा बोले, आम की डाल कोयालियाँ बोले
पिहू-पिहू सबद सुनो श्रवनन से, मानत ना सखी ये मिहरा
सोय रही रतियाँ अंधियारी, नींद उड़ी नैनन ते प्यारी
मोरे श्याम श्याम ना घर पर, सोयी जगावत ये मिहरा
कहूँ किसे मन ना सखी लागे, बिरहनि रैनन में नित जागे
कहे शिवदीन राधिका अेकली, क्यूँ बरसत है ये मिहरा
आ नंदलाल पार रही हेला, मैं अलबेली तू अलबेला
आजा तपन बुझा जा मन की, देखूँ बरसे ये मिहरा

--शिवदीन राम जोशी
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                                  (संदर्भ-श्रेणी:वर्षा ऋतु)
                       (साभार एवं सौजन्य-कविताकोश.ऑर्ग/के.के.)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-01.08.2022-सोमवार.