कान्हा काळा

Started by kavitabodas, July 12, 2010, 04:41:49 PM

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kavitabodas

श्यामल कोमल कृष्ण काळा
सुंदर लोचन नाजूक काया
सांज सकाळी  गोपी संगे
वनमाळी हा खेळून गेला

निळे निळे हे रूप  सावळे
कांती वरती  तेज साजिरे
निळसर निळसर रंग ढगांचे
रंग तनाचे रंग मनाचे

धुंद धुंद ती कृष्ण राधा
वेडी त्यांची प्रीत बघाया
पान फुलांचे गजरे लेवून
गोपी आल्या गवळणी आल्या

श्यामल कोमल कृष्ण काळा
सुंदर सुंदर कृष्ण काळा
सांज सकाळी कृष्ण काळा
कान्हा काळा कान्हा काळा .......

कविता बोडस

amoul

sundar kavita!!! agadi chalit bandhanya sarakhi!! keep it up!!! mast!!!


gaurig


aspradhan

very nice! one more good kavya on Krishna

Vkulkarni

सुरेखच कविता !