मला आवडलेल्या चारोळ्या-चारोळी क्रमांक-48

Started by Atul Kaviraje, August 08, 2022, 01:10:41 AM

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Atul Kaviraje

                                  मला आवडलेल्या चारोळ्या
                                     चारोळी क्रमांक-48
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     --मातृ-भक्त  असा हा नवं -चारोळीकार  आज  पेचात  पडलाय . आई  या  विषयावर  लिहिण्यासाठी  त्याने  एक  अक्खी  २००  पानी  मोठी  वही  विकत  आणली  आहे . त्याने  हाती  पेन  घेतले  आहे . आणि  तो  लेखनासाठी  पुढे  सरसावलंiय . " आई  " हा  शब्द  पानाच्या  मध्यभागी  लिहून  पुढे  निबंध  लिहिण्यास  सुरुवात  करणार  इतक्यात  त्याची  बोटे  थबकलीत . त्याचे  पेन  गळून  पडलंय . खूप  वेळ  विचार  करूनही  त्याचे  आई  या  विषयावर  निबंध  लिहिण्याचे  अवसान  गळून  पडलेय . तो  आता  अतिशय  अंतर्मुख  होऊन  विचार  करतोय .

     तो  म्हणतोय , की  मी  आईवर  लिहिण्यास  सुरुवात  तर  केली . पण  आई  हा  विषय  लेखनाचा  नाहीच  आहे  मुळी , तर  तो  फक्त  समजून  घेण्याचा  आहे . आईने  दिलेल्या  जन्मापासून  ते  त्याला  मोठे  करेपर्यंत , तिने  उपसलेले  कष्ट , झिजवलेला  देह , दुःखाचे  उपसलेले  अनेक  डोंगर  हे  कार्य  इतके  प्रचंड  आहे , की  ते  या  200 पानी  वहीतही  लिहून  होणार  नाही,  की ते  त्यात  मावणारही  नाही. नव्हे  तर  हे  आईवरचे   लिखाण  इतके  प्रचंड  आहे , इतके  अफाट  आहे , इतके  विशाल  आहे , की  ही धरित्री  काय  अख्खे  अंतराळही  आई  या  एकाच  शब्दाने  भरून  जाईल . इतकी  आई  या  शब्दाची  व्याप्ती  आहे . त्याला  अंत  नाही  अन  पारही  नाही . आदी  नाही  अन  शेवटही नाही .

     ज्याप्रमाणे  ईश्वर  हा  चराचरी  भरला  आहे , त्याप्रमाणेच  आई  हे  ईश्वराचेच  एक  रूप , प्रत्यक्ष  आदिमायेचेच  स्वरूप  आहे . आईची  महती , महानता , ममता  गाताना  हा  नवं -चारोळीकार  अतिशय  भावुक  होऊन  म्हणतोय , की  आई , तुझं  कार्य  इतके  थोर  आहे , तुझे उपकार इतके मोठे आहेत, की   तुझ्यासाठी  काय  लिहू , कसं  लिहू ?  तुझ्यावर  लिहिण्यास  माझे  शब्दही  अपूर्ण, अपुरे  पडत  आहेत . इतकी  तू  महान  आहेस . तुझ्यासारखी  तूच  आहेस  आई . एवढं  थोर  कार्य  करूनही  शेवटी  तू  नामानिराळीच  राहतेस . तुला  मोठेपणा  नकोय . मनात  किंतुही  न  ठेवता , कोणताही  स्वार्थ  न बाळगता  तू  आपल्या  मुलांसाठी  केलेले  हे  निर्व्याज्य  कार्य अमूल्य  आहे , किंमती  आहे , मौल्यवान  आहे . ज्याची  उपमा  कशासही  येऊ  शकत  नाही . खरोखरच , आई  तू  आभाळाएवढी  आहेस . तुझी  माया  अनंत  आहे , तू  माझी  आई  असल्याचा  मला  सार्थ  अभिमान  आहे .

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आई साठी काय लिहू
आई साठी कसे लिहू
आई साठी पुरतील एवढे
शब्द नाहीत कोठे..
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--नवं-चारोळीकार
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                        (साभार आणि सौजन्य-मराठी नेतृत्व.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-08.08.2022-सोमवार.